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श्रमणोंका आधार धनिकवर्ग wwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm रचना की। परंतु इतना करने पर भी उनके सम्प्रदायोंकी अभिवृद्धि नहीं हुई । क्योंकि जनसाधारणका समर्थन उन्हें नहीं रहा । जैन साधुओंने अपने संघमें भी जातिभेदको अपना लिया * अतः कुछ ऊँची जातियों—विशेषतः वैश्य जाति—की सहायतासे वह किसी तरह बचा रहा । बौद्ध भिक्षुओंने अन्त तक अपने संघमें जातिभेदको स्थान नहीं दिया । वैसा करना उनके लिए संभव भी नहीं था; क्योंकि बौद्ध धर्म ऐसे देशोंमें पहले ही फैल चुका था जहाँ जातिभेद नहीं था। तब यहाँ जातिभेदका जोर बढ़ जाने पर बौद्धोंको यह देश छोड़कर जाना पड़ा, यह उचित ही हुआ ।
बप्पभट्टिके जन्मसे पहले ३१ वें वर्ष, अर्थात् सन् ७१२ ईसवीमें मुहम्मद बिन कासिमने सिन्ध देशपर कब्जा कर लिया; और तबसे मुसलमानोंका कदम इस देशमैं आगे ही आगे बढ़ता गया। परंतु बप्पभट्टि जैसे लोग राजाश्रयमें मस्त हो रहे थे। सारे हिन्दू समाजपर आनेवाले इस संकटका विचार करनेकी फुरसत उन्हें कहाँसे होती ? हेमचन्द्रसूरिका समय इससे भी अधिक तालाबेलीका था । उनके जन्मसे पहले लगभग ४८ ३ वर्षमें महमूद गजनवीने सोमनाथका मन्दिर लूटा था। उसके हमलोंसे चारों ओर हाहाकार मच गया था । हेमचन्द्रसूरिके जमानेमें भी मुसलमानोंके आक्रमण बन्द नहीं हुए थे; पर हमारे सूरियोंको उनकी क्या परवाह थी ? कुछ मन्दिर बनाये गये और कुछ ग्रन्थ लिखे गये, बस इतनेसे ही जैन-शासनकी विजय हो गई !
* भगवान् बुद्ध पृ० २५७-२५९ ।