Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 76
________________ ५२ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म तब वह बोली, “ तेरे पुत्र सकुशल हैं, पर तुझसे ( उस देवताको पकड़नेकी इच्छा होनेसे) व्रत भंग हुआ है। अतः आलोचना करके दण्ड ग्रहण कर।" उसके अनुसार सब विधियाँ करके कामदेवकी तरह वह भी स्वर्गवासी हो गया। सुरादेव उपासक __ चौथा उपासक सुरादेव वाराणसीका रहनेवाला था। उसके पास छह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गाड़ी हुई थीं और ६० हजार गाएँ थीं। चुलणीपिताके बच्चोंकी तरह ही एक देवताने उसके बड़े लड़केको उसके सामने मार डाला और उसपर सोलह भयंकर रोग डालनेका डर दिखाया। तब उसके मनमें भी चुलणीपिताके समान ही विचार आया और वह उस देवताको पकड़नेके लिए दौड़ा। परंतु वह देवता आकाशमें उड़ गया और इसके हाथमें खंभा आ गया। उसके चिल्लानेसे उसकी पत्नी धन्या उसके पास गई और उसने उसे समझाकर व्रतभंगके लिए दण्ड (प्रायश्चित्त ) ग्रहण करनेको कहा। उसके अनुसार सारे व्रतोंका आचरण करके सुरादेव भी अन्य उपासकोंकी तरह स्वर्गवासी हो गया। चुलशतक उपासक पाँचवाँ उपासक चुल्लशतक आलभिका नगरीमें रहता था। उसके पास कुल १८ करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ और ६० हजार गाएँ थीं। बाकी सारी बातें आनन्द और कामदेवकी तरह ही थीं। केवल विशेष बातें हम यहाँ देते हैं । एक देवताने आकर उससे कहा कि, " तेरी सारी सम्पत्ति इधर-उधर फेंककर मैं उध्वस्त कर देता हूँ।" तब चुल्लशतकके मनमें चुलणीपिताके जैसा ही विचार आया और उस देवताको पकड़नेके लिए वह दौड़ा । देवता छूट गया और चुल्लशतकके हाथमें खंभा रह

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