Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 74
________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म उपासक महाबीर स्वामीको नमस्कार करके घर गया और उसने शिवनन्दाको भी इन व्रतोंके स्वीकार करनेका उपदेश दिया। उसके अनुसार शिवनन्दाने महावीर स्वामीके पास जाकर इन व्रतोको पूर्ण किया। व्रतोंको स्वीकार करके १४ वर्ष पूर्ण होनेपर आनन्द उपासकने अपनी सारी सम्पत्ति अपने बड़े लड़केको दे दी और स्वयं घर छोड़कर पोषधशाला ( धर्मसाधनशाला) में जा रहा। वहाँ व्रत-नियमोंका पालन पूर्ण रूपसे करके उपासकत्वके बीस बरस पूरे होनेपर तीन दिन उपवास करके सल्लखेनाव्रतसे वह स्वर्ग सिधारा । कामदेव उपासक दूसरा उपासक कामदेव था जो चंपा नगरीमें रहता था। उसकी पत्नीका नाम भद्रा था । कामदेवके पास छः करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गाड़ी हुई, छः करोड़ व्यापारमें लगाई हुई और छह करोड़ प्रविस्तरमें लगाई हुई थीं; तथा ६० हज़ार गाएँ थीं । आनन्द उपासककी तरह उसने भी महावीर स्वामीसे गृहस्थधर्मका स्वीकार किया; और कुछ वर्षों के पश्चात् अपने बड़े बेटेके हवाले सारी संपत्ति करके वह पोषधशालामें जाकर रहा । वहाँ एक देवता प्रकट हुआ और उसने भयंकर पिशाचवेश धारण करके कामदेवको व्रतसे च्युत करनेका प्रयत्न किया। परंतु कामदेव निश्चल रहा । उस पिशाचने उसपर तलवारके वार किये, फिर भी वह विचलित नहीं हुआ। तब उस देवताने हस्तिवेश धारण करके अपनी सूंडसे कामदेवको आकाशमें फेंक दिया और दाँतोंपर लेकर पैरोंतले रौंद डाला। फिर भी कामदेव विचलित नहीं हुआ। तब उस देवताने बड़े साँपका रूप ले लिया और कामदेवके गलेके इर्दगिर्द तीन लपेटे डालकर उसने उसकी छातीमें काटा, फिर भी कामदेव स्थिर रह गया।

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