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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
हुआ, तो शब्दालपुत्र उसकी तरफ दौड़ा परंतु वह देवता आकाशमें उड़ गया और उसके हाथमें खंभा आ गया। उसका शोरगुल सुनकर अग्निमित्रा उसके पास गई और उसने उसे बच्चोंके सकुशल होनेका समाचार सुनाकर उसके कुविचारोंके लिए उससे प्रायश्चित्त करवाया। (यह और इसके आगेकी सारी कथा चुलगीपिताकी कथाके समान है।)
महाशतक उपासक आठवाँ उपासक महाशतक राजगृह नगरका था। उसके पास कुल २४ करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ और ८० हज़ार गाएँ थीं। उसकी तेरह स्त्रियोंमें रेवती प्रमुख थी। उसके पास आठ करोड़ सुवर्णमुद्राएँ और ८० हजार गाएँ थीं। शेष बारह पत्नियोंके पास एक-एक करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ और दस-दस हज़ार गाएँ थीं। आनन्द उपासककी तरह महाशतक भी महावीर स्वामीका उपासक बन गया। उसने यह व्रत लिया कि, " मैं अपनी तरह पत्नियोंको छोड़ अन्य किसी स्त्रीके साथ संग नहीं करूँगा
और हर रोज़ केवल ६८ सेर सोनेका ही व्यवहार करूँगा।” अन्य सभी व्रत आनन्द उपासकके व्रतोंकी तरह ही समझे जायें ।
रेवतीने अपनी सौतोंमेंसे छहको शस्त्रप्रयोगसे और छहको विषप्रयोगसे मार डाला और उनकी सारी सम्पत्ति हड़प कर ली । फिर वह मनमाना मद्य-मांस-सेवन करने लगी। कुछ समयके बाद राजगृह नगरमें प्राणिहत्या बंद कर दी गई; तब उसने अपने रेवड़मेंसे हर रोज़ दो गायोंके बछड़े (गोणपोयए) मारकर उनका मांस पकानेका हुक्म दे दिया। उसके अनुसार उसके नौकर उसे हर रोज़ दो बछड़ोंका मांस देते थे। उसे खाकर और शराब पीकर वह रहती थी।
उपासकत्वके १४ बरस पूरे होनेपर महाशतक अपने ज्येष्ठ पुत्रको सारी सम्पत्ति देकर पोषधशालामें जाकर रहा । उसे उपभोगोंकी ओर