Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 81
________________ नन्दिनी पिता और सालिही-पिता उपासक ५७ खींचनेकी रेवतीने बहुत चेष्टा की; पर वह सफल नहीं हुई। फिर एक वार रेवतीने ऐसी ही चेष्टा की; तब महाशतक उससे बोला, " तू सातवें दिन रातको अलसक रोगसे मर जाएगी और नरकमें चली जाएगी।" उसे नाराज़ हुआ देखकर रेवती घर चली गई और सातवीं रातको मरकर नरक चली गइ । यह समाचार महावीर स्वामीको मालूम हुआ तो उन्होंने अपने गोतम नामक शिष्यको भेजकर कटुवचन मुँहसे निकालनेके अपराधमें महाशतकसे प्रायश्चित्त करवाया। अन्तमें महाशतकने एक मासतक अनशन करके प्राण त्याग दिये और वह स्वर्ग गया। नन्दिनी-पिता उपासक नौवाँ उपासक श्रावस्ती नगरीका निवासी नन्दिनी-पिता नामक गृहपति था। उसके पास कुल १२ करोड़ सुवर्ण-मुद्राएँ और ४० हजार गाएँ थीं। उसकी पत्नीका नाम अश्विनी था। उसकी कथा लगभग आनन्द उपासककी कथाके ही समान है। सालिही-पिता उपासक दसवाँ उपासक श्रावस्ती नगरीका निवासी सालिही-पिता था । उसके पास कुल १२ करोड़ सुवर्ण-मुद्राएँ और ४० हज़ार गाएँ थीं । उसकी पत्नीका नाम फल्गुनी था। उसपर कोई संकट नहीं आया और कामदेवकी तरह ही सारा आचरण करके वह स्वर्ग गया। इन दसों उपासकोंने २० वर्ष तक श्रमणोपासना की। . श्रमणोंका आधार धनिकवर्ग उल्लिखित कथाओंसे यह स्पष्ट हो जाता है कि राजाओंके बाद धनिक महाजनोंको खुश करनेकी चेष्टा जैन साधुओंने कैसे की। अनाथपिण्डिक आदि बुद्ध-उपासक और विशाखा आदि उपासिकाएँ .

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