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.. शब्दालपुत्र उपासक
~~~यह सुनकर शब्दालपुत्रको सम्यक् ज्ञान प्राप्त हुआ और उसने महावीर स्वामीसे गृहस्थ-धर्मका स्वीकार किया। उसके कहनेसे अग्निमित्रा भी निग्रंथ उपासिका बन गई। इसके बाद महावीर स्वामी वहाँसे अन्यत्र चले गये।
जब गोशालने यह वृत्तांत सुना कि शब्दालपुत्र महावीर स्वामीका उपासक हो गया है, तो वह अपने शिष्योंके साथ पोलासपुर गया । शब्दालपुत्रने उसको प्रणाम नहीं किया और न ही उसकी आव-भगत की; बल्कि महावीर स्वामीकी सविस्तार स्तुति करके* वह गोशालसे बोला, " क्या तुम मेरे धर्माचार्य ( महावीर स्वामीके ) साथ वाद-विवाद कर सकोगे ? " गोशालने कहा, "नहीं । जैसे कोई जवान आदमी किसी बकरे या भेडेको मजबूतीसे पकड़ता है, वैसे भगवान् महावीर मुझे वाद-विवादमें पकड़ेंगे। इसलिए मैं उनके साथ विवाद करनेमें समर्थ नहीं हूँ।” इसपर शब्दालपुत्र बोला, “हे देवानुप्रिय, तुमने मेरे गुरुकी उचित स्तुति की है। अतः मैं तुम्हें रहनेके लिए स्थान दे देता हूँ।" इसके अनुसार गोशाल शब्दालपुत्रके कारखानेमें रह गया और उसने शब्दालपुत्रको फिरसे अपने संप्रदायमें लानेका बहुत प्रयत्न किया; परंतु वह सफल नहीं हुआ । अतः गोशाल वहाँसे चला गया।
इस प्रकार रहते हुए शब्दालपुत्रके चौदह वर्ष बीत गये, पंद्रहवें वर्षके मध्यमें एक देवताने आकर उसके सामने उसके तीन पुत्रोंको एकके बाद एक करके मार डाला और उनका भुना हुआ मांस उसके शरीरपर डाल दिया । फिर वह देवता अग्निमित्राको मारनेके लिए तैयार ___* मज्झिम निकायमें उपालीसुत्त है। उसमें उपालि निग्रंथसम्प्रदाय छोड़कर बुद्धोपासक बनता है और महावीर स्वामीके घर जानेपर वह उसके साथ वैसा ही बर्ताव करता है एवं बुद्धकी स्तुति करता है। यह साम्य ध्यान देने लायक है।