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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
क्या सुन्दर गुफायें बनवाकर अशोकने उस संप्रदायका गौरव किया होता ? जिस प्रकार अशोकने तीन गुफायें बनवाई थीं, उसी प्रकार उसके पोते (दशरथ) द्वारा भी आजीवकोंको तीन गुफायें दी जानेके शिलालेख प्रसिद्ध हैं। अशोकके केवल सप्तम शिलालेख में निर्ग्रथोंका उल्लेख है; परंतु इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि अशोकने उन्हें गुफा या बिहार बनवा दिये हों । बौद्ध संघके बाद अशोक आजीवकोंका ही आदर करता था; उसका कारण केवल उनकी तपश्चर्या नहीं बल्कि उनका सदाचार ही रहा होगा । इसके लिए एक प्रमाण संयुत्तनिकायके संगाथावग्ग में मिलता है । मक्खलि गोसालके सम्बन्धमें सहली देवपुत्र कहता है :
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तपो जिगुच्छाय सुसंवृतत्तो
वास्तं पहाय कलह जनेन । समोसवा विरतो सच्चवादी नह नू न तादी पकरोति पापं ॥
[ अर्थात् तपस्या से हिंसामय पापका त्याग करनेके कारण जिसका मन सुसंवृत हो गया है, जो सत्यवादी लोगों से कलह उत्पन्न करनेवाली वागी छोड़कर और निंद्य कर्मोंसे विरत होकर समभावका आचरण रखता है, वह कभी पाप नहीं करता । ]
यह उस समयका लोकमत देवपुत्रके मुँहसे कहलवाया गया है । ऐसे सत्पुरुषकी मनमानी निन्दा करके जैनों और बौद्धोंने अपने अपने पंथोंका कोई कल्याण किया हो, ऐसा मुझे नहीं लगता । अशोक के इस उपदेशपर जैनों और बौद्धोंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया कि, “ उस उस सम्बन्धमें सभी संप्रदायोंका गौरव रखा जाय । ऐसा करनेसे अपने संप्रदायकी
* देवपुत्रसंयुक्त, नानातित्थियवग्ग ।