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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
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नहीं है, धर्मोपयोगी नहीं है, ब्रह्मचर्यके लिए आधारभूत नहीं है.... निर्वाणका कारण नहीं है। तब वे पूछेगे कि, यह दुःख, यह दुःखका समुदय, यह दुःखका निरोध और यह दुःखनिरोधगामी मार्ग, इनका स्पष्टीकरण भगवान्ने किया है, सो क्यों ? क्यों कि वह हितकारी है, धर्मोपयोगी है, ब्रह्मचर्यके लिए आधारभूत है....निर्वाणका कारण है।"+
योगसूत्रमें याम यद्यपि निग्रंथों ( जैनों )ने तपश्चर्याका अंगीकार किया और आत्मवाद नहीं छोड़ा, तथापि चार यामोंका प्रचारकार्य भी जारी रखा। चार यामोंमें महावीर स्वामीने ब्रह्मचर्यको जोड़ दिया। जैन साधुओंका यह उपदेश रहता था कि इस ब्रह्मचर्यका पालन गृहस्थोंको भी यथासंभव करना चाहिए । 'अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ( योगसूत्र २।३ ) सूत्रमें इन यामोंको यम कहा गया है और 'जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ' में महाव्रत कहा गया है। यानी पार्श्वनाथके यामों और महावीर स्वामीके महाव्रतों, दोनोंका यहाँ उल्लेख है। योगसूत्र काफ़ी आधुनिक है। यह नहीं कहा जा सकता कि उससे पहले योगिसम्प्रदायने इन यामोंको कब स्वीकार किया था। पर इतनी बात सही है कि उस सम्प्रदायने इन यामोंका प्रचार बिलकुल नहीं किया। यदि वे इन यामोंको सार्वजनिक बना देते तो जैन और बौद्ध साहित्यके समान योगसूत्र भी ब्राह्मणोंके तिरस्कारका पात्र बन जाता। ब्राह्मणोंको इसमें कोई आपत्ति नहीं थी कि कुछ योगी एकान्तमें इन यामोंका अभ्यास करते रहें। क्यों कि वे उनकी वैदिक हिंसामें बाधा नहीं पहुँचाते थे। ___ + यह सारांश है । ये ही बातें चूळमालुक्यपुत्तसुत्तमें भी आई हैं । भ० बु० पृ० १९४-१९६।
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