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पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म
बीच-बीचमें शाक्य देशमें जाकर अपने धर्मका उपदेश करते थे। शाक्योंमें आलारकालामके श्रावक अधिक थे; क्योंकि उनका आश्रम कपिलवस्तु नगरमें ही था ।x आलारके समाधिमार्गका अध्ययन गोतम बोधिसत्त्वने बचपन में ही किया;+ फिर गृहत्याग करनेपर वे प्रथमतः आलारके ही आश्रममें गये और उन्होंने योगमार्गका अध्ययन आगे चलाया । आलारने उन्हें समाधिकी सात सीढ़ियाँ सिखाईं । फिर वे उद्रक रामपुत्रके पास गये और उससे समाधिकी आठवीं सीढ़ी सीखी, परंतु उतनेसे उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। क्योंकि उस समाधिसे मनुष्यके झगड़े ख़त्म होना संभव नहीं था । तब बोधिसत्त्व उद्रक रामपुत्रका आश्रम छोड़कर राजगृह चले गये । वहाँके श्रमण संप्रदायमें उन्हें शायद निर्ग्रन्थोंका चातुर्याम-संवर ही विशेष पसंद आया; क्यों कि आगे चलकर उन्होंने जिस आर्य अष्टांगिक मार्गका आविष्कार किया, उसमें इस चातुर्यामका समावेश किया गया है।
परंतु उस ज़मानेमें इस चातुर्यामको गौणत्व प्राप्त होकर तपश्चर्याको महत्त्व मिल गया था । आजीवक संप्रदायमें ही जिन थे और सबको ऐसा लगता था कि जिन हुए बिना धर्मोपदेश करनेका अधिकार प्राप्त नहीं होता। इसी लिए महावीर स्वामीने गोसालकी मददसे कठोर तपस्या की और तभी निग्रंथोंने उन्हें अपना नेता माना। इसी लिए गोतम बोधिसत्त्वको भी तपश्चर्यामें कमाल करके अपना मार्ग प्रशस्त करना उचित मालूम हुआ। लगभग छह वर्ष तक तपश्चर्या करनेके बाद उन्हें पूरा विश्वास हुआ कि उनके कर्मयोगमें देहदण्डनसे कोई लाभ नहीं हो सकता; बल्कि वह हानिकर ही होगा। साथ ही केवल चार यामोंसे
+ भ० बु० पृ० १०३-१८५
x भगवान् बुद्ध पृ० ९२ भ० बु० पृ० ११६-११७