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मक्खलि नामका विपर्यास
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मेरी लाशको श्रावस्तीके सभी चौकों और बाज़ारोंमेंसे घुमाओ और उद्घोषित करो कि, यह मंखलि गोशालक जिन होनेका ढोंग रच रहा था, पर बिना जिन हुए ही मर गया।" __“गोसालके शिष्योंने हालाहलाकी भाण्डशालाके. अन्दर ही श्रावस्तीका एक नक्शा बनाया और गोसालके शवको उसके आदेशके अनुसार वहीं घुमाया । यह नाटक समाप्त होनेके बाद उन्होंने उस शवको नहलाया और कपड़ेसे ढाँककर पालकीमें बिठाया और सारी श्रावस्तीमें घुमाकर उसका उचित क्रियाकर्म किया।"
मक्खलि नामका विपर्यास जैन ग्रन्थकारोंका कहना है+ कि मंख नामकी एक नटोंकी जाति थी, उस जातिमें जन्म लेनेके कारण गोसालके मंखलिपुत्र कहा जाता था । यदि यह सच हो तो उसे मंखपुत्र क्यों नहीं कहा गया ? उसमें 'लि' कहाँसे आया ? बुद्धघोषाचार्यने तो इससे भी ज्यादा कमाल कर दिखाया है। उन्होंने मक्खलि शब्दकी व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है :मक्खलि उसका नाम था और गौशालामें उसका जन्म होनेसे उसे गोसाल (गोशाल) कहा जाता था । वह तेलका घड़ा लेकर कीचड़मेंसे जा रहा था, तब उसके मालिकने उससे कहा, “ देखो भाई, नीचे मत गिरना (मा खलि)।" पर वह गलतीसे गिर पड़ा और मालिकके डरसे उठकर भागने लगा । मालिकने उसकी धोती पकड़ ली। परंतु उसे मालिकके ही हाथमें छोड़कर वह नंगा ही भाग गया। इस प्रकार 'मा-खलि' शब्दपरसे उसे मक्खलि कहा जाने लगा ।*
+ श्रमण भगवान महावीर पृ० २८३ * दीघनिकाय अ० १।१८१-१८२, मज्झिम निकाय अ० २।३१४