Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 32
________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म इधर पार्श्व भगवान् यह जान गये कि उनका कर्मफल भोगना समाप्त हो गया है; अतः वे प्रव्रज्या लेनेको तैयार हुए, और विशाला नामकी शिविका (पालकी ) में बैठकर अरण्यमें स्थित आश्रममें गये । वहाँ उन्होंने अपने वस्त्र-अलंकारोंका त्याग किया। तब इन्द्रने उन्हें वस्त्र दे दिये । उनके साथ ३०० राजाओंने प्रव्रज्या ले ली। एक बार पार्श्वनाथ यात्रा करते करते एक तापसाश्रममें पहुँचे आर वहाँ एक कुएँके पास वटवृक्षके नीचे ठहर गये। तब पूर्वजन्मका बैर निकालनेके लिए मेघमाली असुरने बहुत-से भयंकर शार्दूल (सिंह) उत्पन्न करके उन्हें पार्श्वनाथपर छोड़ दिया। परंतु पार्श्वनाथकी समाधि भंग नहीं हुई आर वे शार्दूल कहींके कहीं चले गये । इसके बाद मेघमालीने क्रमशः पहाड़ जसे हाथी, अपने डंकसे पत्थरोंको तोड़नेवाले बिच्छ, निर्दय रीछ, दृष्टि-विष साँप, और भयंकर बेताल उत्पन्न करके उन्हें पार्श्वपर छोड़ दिया । मगर वे सब वहींके वहीं नष्ट हो गये । तब मेघमालीने कल्पान्त मेघ जसी वर्षा की । उससे बाढ़ आई और पार्श्वनाथकी नाकतक पानी पहुंच गया। उस समय धरण नागराजका आसन कंपित हुआ और उसने जान लिया कि पूर्वजन्मका कठ इस जन्ममें मेघवाली बनकर पार्श्वनाथको सता रहा है । अतः वह अपनी रानियों समेत पार्श्वके पास गया और उसने अपने शरीरसे पार्श्वनाथको घेरकर अपने सात फनोंसे उनपर छत्र बना लिया और उसकी रानियोंने पार्श्वनाथके सामने सुंदर नृत्य शुरू किया। पार्श्वनाथ जिस प्रकार मेघवालीकी करतूतोंसे विचलित नहीं हुए थे उसी प्रकार उस नृत्यका भी कोई प्रभाव उनपर नहीं पड़ा। ___ मेघवाली लगातार पानी बरसाता ही रहा । यह देखकर धरण नागराज क्रुद्ध हुआ और बोला, “अरे, तू यह क्या कर रहा है ? उस दिन लकड़ीके अंदर साँप जल रहा है, यह जानकर प्रभुने तुझे पापसे

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