Book Title: Parishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 34
________________ परिशिष्ट पर्व. [पहला विवाह कर दिया है अत एव विवाहोत्सवमें मेरे घरपर बाजे बजतेथे मुझे कुछ खबर न थी कि आपके चित्तमें खेद है । आप मेरा यह अपराध क्षमा करें । वेश्याका यह कथन सुनकर राजाने उसको देखनेके लिए अपने नौकर भेजे । उन्होंने पहले “वल्कलचीरी" को देखा हुआथा अत एव उन्होंने वेश्याके घर जातेही वल्कलचीरीको पैछान लिया और राजासे आकर कह दिया कि, हजूर आपके छोटे भाई वनवासी वल्कलचीरीही हैं । यह सुनकर राजाके हृदयमें हर्षका पार न रहा और उसी वक्त हाथी सजवाकर वधुके साथही "वल्कलचीस" को अपने मकानपर बुलवा लिया और उसको धीरे धीरे संसार संबंधि सब व्यवहार सिखाके अपने राज्यमेंसे आधा राज्य देकर अच्छे अच्छे कुलवान राजा ओंकी कंन्यायें उसके साथ परणाई । इस प्रकार छोटे भाईको संसार संबंधि सुखोंमें जोड़कर “राजा प्रसन्नचंद्र" अपने आपको कृतार्थ मानने लगा । सर्व व्यवहारको जाननेवाला "व. ल्कलचीरी" भी अब विषयसुख समुद्रमें मग्न होकर समयको व्यतीत करता है। एक दिन “वल्कलचीरी" को मार्गमें सहायता करनेवाला रथवान, चोरसे मिले हुए धनको लेकर बजारमें निकला और उसे बेचनेके लिए एक दुकानपर मया, वेचते समय उसमेंसे कितनीक वस्तुयें लोगोंने पैछान लीं, अत एव दुकानदारोंने कोतवालको बुलाकर उस आदमीको पकड़वा दिया। कोतवाल उस आदमीके हाथ बाँधकर राजसभामें लेगया । उस वक्त "वल्कलचीरी" भी सभामें राजाके पासही बैठा था । “वकलचीरी" ने उस स्थवानको देखकर शीघ्रही पैछान लिया और राजासे कहकर उसको छुड़वा दिया क्योंकि कृतज्ञ पुरुष चिर कालतकभी अपने उपकारीके उपकारको नहीं भूलते। अब इधर

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