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परिच्छेद.] जंबूकुमारका अपनी स्त्रियोंके साथ विवाद. ६९ लेकर एक बड़ी भारी भयानक अटवीमें जा घूसा । दैवयोगसे उसने उस अटवीमें जातेही मदोन्मत्त और क्रोधसे लाल हुवे हैं नेत्र जिसके गर्जारव करते हुवे साक्षात यमराजके समानही एक बड़े भयानक जंगली 'हाथी' को देखा, 'हाथी' को देखतेही उस बिचारे आदमीके प्राणखुस्क हो गये 'हाथी' भी उस आदमीको देखकर अपनी सूंडको उठाकर उसके पीछे भागा, वह पुरुष भी 'हाथी' को अपने पीछे आता देखकर अपनी जान बचानेके लिए भागने लगा क्योंकि प्राणी मात्रको जीवितके समान अन्य कोई इष्ट आशा नहीं, इस प्रकार वह आदमी 'गेंद' के समान जमीनपर ठोकरें खाता हुआ भागा जा रहा है और पीछे 'हाथी' भी यमराजके समान उसका ग्रास करनेके लिए भाग रहा है, इस अवस्थामें उस आदमीने घासके तृणोंसे आच्छादित एक 'कुवे' को सामने देखा । 'कुवे' को देखकर उसने विचारा कि यदि इस ' कुवे' में गिरजाऊँ तो कोई दिन जीनातो मिलेगा बाहर रहनेसे तो यह दुष्ट 'हाथी' एक मिटमेंही मेरा ग्रास कर लेगा। यह विचार करके उसने शीघ्रही उस 'कुवे' में झंपापात किया । उस 'कुवे' के किनारेपर एक बड़ा भारी 'बड़' का जाड़ था उस बड़के वृक्षकी जड़ें लताके समान कुवेमें लटकती थीं अत एव कुवेमें पड़ते समय उस आदमीके हाथमें 'बड़ की जड़ आगई, उन जड़ोको पकड़कर वह कुवेमें अधर लटक गया, उस समय वह ऐसा.मालूम होताथा कि, मानो किसीने रस्सीसे बाँध कर कुवमें घड़ा लटकाया है। पीछेसे हाथीने आकर शीघ्रही उस कुवेमें सूंड लटकाई परन्तु सूंडका उस आदमीके सिरके साथही जरासा स्पर्श हुआ अत एव उसे ऊपर आकर्षित करनेके लिए असमर्थ हुआ, उस आदमीने नीची नजर करके देखा तो कुवेके अन्दर एक बड़ा