Book Title: Parishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ परिशिष्ट पर्व. पिंदरवा. वार सहित वहांसे विहार कर भगवान श्रीमहावीरस्वामीके चरणोंमें चले गये । उस दिन से लेकर श्रीसुधर्मास्वामी, भगवान श्रीमहावीरस्वामी के साथही विवरे । गणधर भगवान श्री मुधर्मास्वामिने पचास वर्षकी उम्रमें श्रीमहावीरस्वामिके पास दीक्षा ग्रहण की थी, दीक्षा लेकर तीस वर्ष तक भगवान श्री महावीरस्वामिकी पवित्र सेवाम रहे । भगवान श्रीमहावीरखामिके मोक्ष जाने बाद बारह वर्ष तक नार्थकी प्रभावना करते हुए छदमस्थावस्थामें विचरे । वानव वर्ष की अवस्थामें उन्हें केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई । केवलज्ञानावस्थामें आठ वर्ष तक भव्य जीवोंको बोध करते हुए पृथ्वी तलप विचरते रहे । पूर्णायु सौ वर्षका पालके और निर्वाण समय निकट समझकर 'जंबूस्वामी' को अपने पदपर स्थापन करके भगवान श्रा सुधर्मास्वामी नि णपद (यानी मोक्षपदको प्राप्त हुए । इधर श्री 'जंबूस्वामी' ने गणधर भगवान श्रीधर्मास्वामिके निर्वाण बाद तीब्र तपस्या आचरण करते हुए केवलज्ञानकी प्राप्ति की । चरम केवली श्री 'जंबूस्वामी' केवलज्ञानावस्थामें विचरते हुए अनेक भव्य जीवोंको धर्मके रास्तेमें चलाते हुए भगवान श्रीमहावीरस्वामिके निर्वाण बाद चौसठ वर्ष तक निरनिचार चारित्र पालकर और प्रभवस्वामिको अपने पदपर स्थापनकर कर्म मलके दूर होनेसे जन्ममरणसे रहित होकर अक्षयपदको प्राप्त होगये ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198