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परिशिष्ट पर्व. [सासका खोदते बहुतसेही दिन व्यतीत होगये परन्तु वन्ध्या स्त्रीके स्तनोंसे. दूधके समान उसमेंसे एकभी पानीका बिन्दु न निकला, पानीका तो कहनाही क्या परन्तु कीचड़ तकभी नहीं प्राप्त हुआ। जब कूवमेंसे पानीही न निकला तब इक्षु और गेहूँकी तो कथाही क्या इस प्रकार प्राप्त हुवे धान्यको नष्ट करके वह 'बक' हाथही झाड़ता रह गया। इसी प्रकार हे स्वामिन् ! आपभी प्राप्त हुवे स्त्री धन सुखकोत्यागकर अधिककी इच्छा करते हो परन्तु याद रक्खो आप भी उस 'वक' के समान पश्चात्ताप करोगे ।
यह सुनकर अल्पकर्मी 'जंबूकुमार' मुस्कराकर बोला, हे भोली समुद्रश्री ! मैं काकके समान विषयोंमें लुब्ध नहीं हूँ। जैसे कि नर्मदा नदीके किनारे विन्ध्याचलकी अटवीमें यूथाधिपति एक बड़ा भारी हाथी रहता था, युवावस्थामें वह अपने दन्त घातोंसे बड़े बड़े वृक्षोंको तोड़ डालता था और उसके भयसे उस अटवीमें अन्य किसी हाथीका प्रवेश न होता था, स्वच्छन्दतापूर्वक अटवीमें विचरता हुआ बड़ें आनन्दसे अपने समयको व्यतीत करता था । इस प्रकार सुखमय योवनको व्यतीत करके जीर्ण वनके समान वृद्धावस्थाको प्राप्त हुआ, अब वृक्षोंपर दन्ताघात करनेसे असमर्थ हुआ, अत एव अब मूके पत्तेही खाकर उदर पूरती करता है परन्तु उन सूके पत्तोंसे पुराने कुवेके समान उसका पेट कहांसे भरना था, इसलिए वह बिचारा क्षाम कुक्षीही रहकर अपने दिन बिताता है, ऊंचेसे नीचे और नीचेसे ऊंचे जानेमें असमर्थ होकर थोड़ेही प्रदेशमें विचरता है।
एक दिन वह बूढ़ा हाथी विषम प्रदेशसे नीचे उतर रहा था, दैवयोगसे उसका पाँव फिसल गया । दुर्बल होनेसे वह अपने शरीरको न सिंभाल सका अत एव पर्वतके एक शिखरके समान