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परिच्छेद.] नूपुर पंडिता. गीकार करके 'दुर्गिला' के मकानपर भिक्षाके बहानेसे गई और कहा कि हे भद्रे! ऐसा गुणवान तथा कामदेवके समान रूपवान नव युवक पुरुष मिलना बड़ा दुर्लभ है, जबसे तुझे उसने नदीपर देखा है तबसे उसे क्षणभर भी कल नहीं पड़ती और रातदिन तेरेही नामकी रटना रटता है इस लिए तू उसके साथ क्रीडा करके अपने नव योबनको सफल कर । जब उस दूतीने 'दुर्गिला' के मकानपर जाकर ऐसा कहा उस वक्त 'दुर्गिला' अपने घरके बरतन माँज रही थी, इस लिए उसके हाथ काले होरहे थे । उस बुढिया जोगनका कथन सुनकर 'दुर्गिला' उस संकेतको समझ गई और अपने मनका भाव छिपाकर कटु शब्दोंसे उसका तिरस्कार करती हुई बोली-अरी दुटनी क्या आज तूने भाँग पीई है ? जो तू इस प्रकार असंबद्ध और अश्रोतव्य वाक्य बोल रही है ? क्या तूने हमे कुलटा स्त्री समझा हुआ है ? जा तेरी खैर है तो यहांसे जलदी निकल जा तेरे दर्शनसेही महा पाप लगता है संभाषणकी तो कथाही क्या । इस प्रकार तिरस्कार करके 'दुगिला' ने उस 'जोगन' को अपने घरसे निकाल दिया और जाते समय उसकी पीठपर स्याहीसे भरा हुआ हाथ मारा, स्याहीसे भरे हुवे हाथ मारनेका आशय न समझकर वह 'जोगन' क्रोधमें भरी हुई उस दुःशील पुरुषके पास आई और कहने लगी अरे मृषावादी तूने नाहक उस विचारी सतीको क्यों बदनाम किया है ? तू तो कहता था वह मेरे ऊपर रागवाली है परन्तु वह तो तेरा नाम लेनेसेही हजारों गालियें सुनाती है वह तो बड़ी सुशीला तथा कुलीना मालूम होती है, उस सुशीलाके विषय मेरा दूती कर्म कुछ काम नहीं आसकता, मुझे उसने कठोर वचनोंसे. तिरस्कारपूर्वक अपने मकानसे बाहर निकाल दिया और चलते