Book Title: Parishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 171
________________ परिच्छेद.] नागश्री-ललितांग. १५७ कोई कथा आती भी नहीं। यदि राजाके सामने म ऐसा कहूँ कि मुझे कथा सुनानी नहीं आती, तो राजा मुझे कारागार (जेलखाने) में डाल देगा और वहांपर न जाने मेरी क्या दशा होगी । ब्राह्मण जब इस प्रकारकी चिन्तामें मग्न होरहा था तब उसकी एक कुमारी कन्या उसका मलीन चेहरा देखकर बोली-पिताजी ! आज आप किस चिन्तामें पड़े हैं ? । लड़कीके पूछने पर उसने अपनी चिन्ताका कारण कह सुनाया । लड़की बोली-पिताजी ! आप इस बातकी चिन्ता मत करो, जब कथा कहनेका आपका वारा आयेगा तब राजसभामें जाकर आ के बदले में कथा सुना आऊँगी । कथा सुनानेका वारा आनेपर वह ब्राह्मणपुत्री स्नानकर श्वेत पोशाक पहनकर राजसभाग गई और राजाके सन्मुख होकर बोली-राजन्! आप सावधान होकर कथा सुनिये । ब्राह्मणपुत्रीकी यह वाचा सुनकर राजा बड़ा विस्मित हुआ और सावधान तया उसकी कथा सुनने लगा। लड़कीने भी कथा कहनी प्रारंभ कर दी। तथाहि-इसी नगरके बीच में भिक्षाद्वारा अपने जावनको व्यतीत करनेवाला 'नागशर्मा' नामका एक ब्राह्मण रहता है, 'सोमश्री' नामकी उसकी पत्नी है और सोमश्रीकी कुक्षिसे पैदा होनेवाली 'नागश्री' नामकी मैं उनकी पुत्री हूँ । जब मैं योवनको प्राप्त हुई तब मेरे मातापिताने एक गरीब ब्राह्मणपुत्र 'चट्ट' के साथ मेरी सगाई कर दी । एक दिन किसी प्रयोजनवश मेरे मातापिता मुझे अकेलीको घरपे छोड़कर किसीएक गाँवको चले गये । दैवयोग जिस दिन मेरे मातापिता मुझे अकेली छोड़के गाँवको गये थे, उसी दिन ब्राह्मणपुत्र 'चट्ट' मेरे घरपे आगया । मैंने मातापिताके न होनेपर भी स्नानभोजनादि उचित सन्मान किया ।

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