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परिच्छेद.]
तीन मित्र. - इस लिए हे भद्रे ! अक्षय मुख देनेवाला और अभय स्थानपर पहुँचानेवाला जो परम मित्र धर्म है, मैं उसकी उपेक्षा कदापि न करूंगा। _ 'जयश्री' बोली-है तुण्ड ताण्डव धीनिधे! नागश्रीके समान कूट कया, मुना मुनाके उलटा हमेंही. रंजन करना चाइते हो।