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परिच्छेद.] नागश्री-ललितांग. १६५ मेंसे पानीके जोरसे गटरके द्वारा खाईमें आ पड़ना यह गर्भावाससे योनिद्वारा जेर आदि मलमूत्रसे लिप्त होकर सूति गृहरूप खाईमें आपड़ता है, जो पानीके पूरसे 'ललिताङ्ग को मूळ आई थी वह यह समझना कि जब जीव मलमूत्रादिसे लिप्त होकर पैदा होता है, उस समय इसको मूर्छा आजाती है और धायमाता (दायी) उस वक्त परिचरिया करके सचेतन करती है । यदि 'ललिताङ्ग' को रानी ललिता फिरसे याद करे तो क्या वह उसके पास जासकता है ?।
'जंबुकुमार' की आठोंही स्त्री बोलीं-स्वामिन् ! अल्प दुःखके स्थानपर भी मनुष्य जानकर नहीं जासकता तो फिर जिस आदमीने जिस स्थानपर नरकके समान वेदना भोगी हो वह आदमी उस स्थानपर किसतरह जासकता है ? ।
'जंबूकुमार' बोला-प्रिये ! कदापि 'ललिताङ्ग' तो उसके रूपसे मोहित होकर चला भी जाये परन्तु मैं तो इस गर्भसंक्रान्ति कारणको समझकर कदापि न रहूँगा।