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परिच्छेद.] नूपुर पंडिता. । घूमनेवाले नगरके युवा पुरुषोंकी ओर तीक्षण कटाक्ष भी फेंकती • जाती थी । पानीसे भीजे हुवे बारीक एक वस्खसे उसका सर्वांग
देख पड़ता था, दूसरे कामकी चेष्टायें करती जाती थी फिर कहनाही क्या था । 'दुर्गिला' जब इस प्रकार जलक्रीड़ा कर रही , थी उस समय नदी तटपर एक दुःशील युवा पुरुष घूम रहा था और वह 'दुर्गिला' की ये सब चेष्टायें भली भांति देख रहा था अत एव वह युवा पुरुष न रह सका, दाव लगाकर यों बोलाहे भद्रे! यह नदी और नदीके निकट वर्ति क्ष तेरेसे पूछते हैं कि तूने भली प्रकारसे स्नान किया है नं ? यह सुनकर 'दुर्गिला' बोली-इस नदीका कल्याण हो और नदीके निकटवर्ति वृक्ष चिरकाल तक वृद्धिको प्राप्त हों और तुम्हारे जैसे सुस्मान पूछनेवालोंके समीहितको मैं पूर्ण करूँगी । 'दुर्गिला' के व्यंग भरे वचनको सुनकर वह युवा पुरुष अपने मनमें बड़ा हर्षित हुआ
और कुछ देर तक टकटकी लगाकर उसकी ओर देखता रहा मनही मन विचारने लगा कि यह कौन है ? और इसका मकान कहां होगा? इसके साथ किस प्रकार मेरी बातचीत होसकती हैं ? । इस प्रकार उसके मनमें संकल्प विकल्प होने लगे। उसमदीके पासही एक-दो बेरीके वृक्ष थे वहांपर बहुतसे छोटे छोटे लड़के बेर खानेके लिए फिर रहे थे, उस युवा पुरुषने 'दुर्गिला' का पता. निकालनेके लिए उन लड़कोंको देखकर एक उपाय मिकाल, उन लड़कोंके पास जाकर ईट-पत्थर आदिसे बेरीके बहुतसे बेर तोड़ डाले, उन बेरोंको वे लड़के बड़ी खुशीसे उग प्रवाफार खाने समे, इस अवसरमें उसयुवा पुरुनि सम लडकीस पूछा कि यह नदीमा स्नान करनेवाली स्त्री कौन है? और इसका घर कहां है? - के लड़के बोले क्याातुम इसे नहीं जानते? यह
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