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परिच्छेद.] नूपुर पंडिता.
११३ भागी करो । राजाका यह वचन सुनकर हाथी एकही पाँवके आधारसे खड़ा होगया और नगरवासियोंकी आँखोंसे अश्रुधारा बहने लगी। नगरवासी और हाहाकार करते हुए बोले-महाराज ! आपने जो धारा है आपसोही करेंगे परन्तु इस करिरत्नका मरण देखनेके. लिए हम सर्वथा असमर्थ हैं, इसको मारनेसे आपका नि:संदेह दुनियाँमें अपयश फैलेगा और ऐसा करिरत्न भी आपको प्राप्त होना बड़ा दुर्लभ होगा । इस लिए हे स्वामिन् ! कार्य और अकार्यमें आप स्वयं विचारशील हैं, इस कार्यको विचारके और हमारे ऊपर कृपा करके इस 'करिरत्न' को अभयदान दें । राजा बोला-यदि तुम लोगोंका ऐसाही आग्रह है तो तुम मेरे कहनेसे इस हाथीवानको हाथीकी रक्षाके लिए कहो । राजाकी आज्ञा पाकर उन सब जनोंने हाथीवानसे कहा-भाई ! ऐसे विषम शिखरपर तुने हाथीको चढ़ा तो दिया परन्तु किसी तरह इसे नीचे भी उतार सकता है या नहीं ? । हाथीवान बोला-यदि राजा मुझे और रानीको अभयदान देवे तो बड़ी कुशलतासे हाथीको नीचे उतार सकता हूँ । सब जनोंने राजासे उनके अभयदानकी प्रार्थना की, राजाने सर्व जनसमुदायके आग्रहसे वैसाही मंजूर किया, हाथीवानने धीरे धीरे बड़ी कुशलतापूर्वक हाथीको नीचे उतार दिया। राजाने रानी तथा हाथीवानको हुकम कर दिया कि तुम मुझे अपना मुँह मत दिखाओ और शीघ्रही मेरे राज्यसे बाहर निकल जाओ । इस प्रकार राजाकी आज्ञासे जान बचाकर वे दोनोंही वहांसे भाग निकले । उनको जाते हुवे मार्ग दिन अस्त होनेपर एक गाँव आया, उस गाँवके बाहर एक किसी देवताका मठ था, उस मठमें रानी और हाथीवान दोनों अपनी रात व्यतीत करनेके लिए सोरहे । इधर मठके समीपवाले गाँवमें प्राय प्रतिदिन
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