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परिच्छेद.] ब्राह्मणपुत्र और एक शकुनि. खाता है। इससे बढ़कर और कौनसा साहस है । वैसेही हे स्वामिन् ! आप भी संसारके सुखोंको छोड़कर अदृष्ट सुखकी इच्छासे तप करना चाहते हो, मगर याद रक्खो कभी प्राप्त हुएको भी न खो बैठो । कुछ मुस्कराकर जंबूकुमार बोला-भद्रे! तुमारे इन
धुर वचनोंसे मैं कभी मोहित होनेवाला नहीं, मेरा मन अचलके समान निश्चल है, उसे देवाङ्गनायें भी चलानेको असमर्थ हैं। मैं उन तीन मित्रोंकी कथाको जानता हूँ, अत एव अपने स्वार्थसे भ्रष्ट न होऊँगा।