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परिशिष्ट पर्व. आठवा. निकाल लिया और निकालकर घरपर लौट गया । प्राय समय जनोंको निद्रा भी अल्पही आती है, जिस वक्त 'दुर्गिला' के पावसे 'देवदत्त' 'नूपुर' निकालके ले गया उस वक्त उसकी आँखें खुल गई और उसने अपने सुसरे 'देवदत्त' को पैछान लिया अत एव उसने शीघ्रही अपने जारको जगाया और बोली हम दोनोंको सोते हुवे मेरा सुसरा देख गया है और वह मेरे पाँवसे 'नूपुर' भी निकालकर ले गया, अब तुम अपने घर चले जाओ प्रात:काल मेरे ऊपर बड़ी आपत्ति आनेवाली है, तुमसे बने उतनी सहायता देना । यों कहकर जार पुरुषको तो रुकशद किया और आप अपने पतिकी शय्यामें जाकर सो गयी और थोड़ीही देर बाद गाढालिंगनकर उसकी निद्रा उड़ा दी और बोली स्वामीनाथ ! यहां तो बड़ी गरमी लगती है चलो अशोकवाड़ीमें चलके सोवें वहां बड़ा ठंडा पवन चलता होगा।
'देवदिन्न' स्त्रीचरित्रोंसे बिलकुल अनभिज्ञ था इस लिए वह स्त्रीके कथनको विशेष मान देता था । 'देवदिन्न' 'दुर्गिला' के कहनेसे अशोकबाड़ीमें वहांपरही जाकर सो गया, जहांपर अभी थोड़ी देर पहले 'दुर्गिला' और उसके 'जारपुरुष' को देवदत्तने सोते हुवे देखा था। 'देवदिन' को 'अशोकवाड़ी' का शीतल पवन लगनेसे शीघ्रही निद्रा आगई क्योंकि अक्षुद्र मनवालोंको प्रायः जल्दीही नींद आजाती है । कुछ देरके बाद पतिको जगाकर बड़े अपशोस भरे हुवे वचनोंसे बोली-स्वामिन् ! यह क्या कोई आपके कुलका आचार है ? जिसे मैं मुखसे कहती हुई भी शरमाती हूँ, अभी मैं तुम्हारे साथ आलिंगन करके सोरही थी, तुमारा पिता यहां आकर मेरे पावसे नूपुर निकाल ले गया, अन्य समय भी पुत्रकी स्त्रीको हाथ लगाना उचित नहीं। भला पतिके