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परिच्छेद.
अठारा नाते. भक्तिपूर्वक नमस्कार कर हाथ जोड़के बोला भगवन् ! सर्व प्रकारकी सामग्री होनेपर मेरे घरसे आप भिक्षा न लेकर पीछे लौट चले इसका क्या कारण ? मैने कोई आपकी अवज्ञा भी नहीं की और ना मैं आपका अभक्त हूँ। महात्मा बोले-भाई ! केवल मांस. देखकरही मैं इस मकानसे पीछे नहीं लौटा किन्तु और भी मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ है, जब महेश्वरदत्तने उनसे आश्वयेका कारण पूछा तो महात्माने उसके पिताके जीव महीष तथा उसकी माताके जीव कुतियाकी सर्वे कथा कह सुनाई। उस आश्चर्यजनक कथाको सुनकर 'महेश्वरदत्त' बोलाभला इस बातका प्रत्यय किसतरह हो ? महात्मा बोले यदि प्रत्यय करना है तो इस कुत्तीसे पूछो, तुमारे बापका दबाया हुआ धन तुमारे घरमें बतावेगी । महात्माके कहनेसे जब उस महेश्वरदत्तने कुत्तीसे पूछा तो वह कुतिया पूंछ हलाती हुई महेश्वरदत्तके घरमें जा घुसी और जहांफर उसके पतिने धन गाडा हुआ था उस स्थानको अपने पंजोंसे खोदने लगी, जब खोदते खोदते वहांसे बहुतसा धन निकला तो 'महेश्वरदत्त' को उस वातका प्रत्यय होगया अत एव उसने संसारकी विचित्र रचमा जानकर बहुतसा धन अर्थीजनोंको दान देकर संसारसागरसे तारनेवाली दीक्षा ग्रहण कर ली । इसलिये हे प्रभव ! यदि पुत्रसेही पिताकी सद्गति होती हो तो महेश्वरदत्तके होते हुवे उसके पिता समुद्रकी यह दशा क्यों होती है।
'समुद्रश्री' जंबूकमारसे बोली-खामिन् ! यह काम करते हुबे आप 'बक' नामा कृषकके समान पीछेसे पश्चात्ताप करोगे। यथा 'सुसीम' नामके नमरमें धमधान्यादिसे समृद्ध एक बकनाबका कृषक रहता था, वह विचारा सदाही कंगमी कोदा खेतमें यो