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परिशिष्ट पर्व.
[सातवाँ
नज़र आया इसलिए हमसे मुग्धतामें यह अनुचित कार्य होगया, 'कुबेरदत्त' बोला- माता ! तुमने यह बड़ा भारी अनर्थका कार्य किया जो हमारा बहिन भाईका परस्पर विवाह संबंध कर दिया इससे तो हमारी ही माता श्रेष्ठ थी जिसने जन्म देकर पालनपोषन करने के लिए असमर्थ होकर हमारे भाग्याधीन करके हमें " यमुना' की धारा बहा दिया क्योंकि उसने हमसे किसी प्रकारका अकार्य नहीं कराया यदि उसे अकार्य कराना पसंद होता तो इस प्रकार ' यमुना' की धारमें निष्ठुर होकर न बहा देती, उसने अकृत्य करानेसे हमारे प्राणोंका अपहारही अच्छा समझा । इसी लिए उसने हमें 'संदूक' में बंद करके जलधारा में बहा दिया क्योंकि शास्त्रमें भी घने ठिकाने यह पंक्ति आती है कि - जीवतान्मरणं श्रेयो न जीवितमकृत्यकृत् । माता बोली कि हे पुत्र ! खेद मत करो विवाह के सिवाय तुमारा स्त्री-पुरुषवाला अन्य कोई भी अभीतक कर्म नहीं हुआ तुम अभी भी ' कुबेरदत्ता' से यह वृत्तान्त कहकर भाई-बहिनका संबंध रक्खो । अन्य कन्याओंके साथ तुमारा पाणीग्रहण करा देंगे । ' कुबेरदत्त ' ने माताका कहना मंजूर करके ' कुबेरदत्ता' से जाकर कह दिया कि भद्रे ! तू बड़ी दक्षा और चतुरा है जो तूने मुझे और अपने आपको घोर कर्मों से बचाया खैर अभीतक हमारा तुमारा कुछ नहीं बिगड़ा निश्चय हम तुम बहिन-भाई हैं यह सब दैवकी घटना बनी
अब तुम अपने घर जाओ और जो तुम उचित समझो सो करो, 'कुबेरदत्त' इस प्रकार 'कुबेरदचा ' को कहकर और अपने घरसे कुछ क्रयाणा लेकर व्यवहार करनेके लिए मथुरा नगरीमें चला गया, वहां जाकर व्यपारसे 'कुबेरदत्त ? ने बहुतसा धन उपार्जन किया और योवनके उचित अनेक प्रकारके सुखोंका अ