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परिशिष्ट पर्ष.
[छडा.
नगरमें न रहा गया अत एव वह घर से निकल पड़ा और कितएक आदमियोंको साथ लेकर विन्ध्याद्रिकी विषम गुफाओं में जाकर एक गाँव बसा कर रहने लगा। साथके आदमियोंसे नगरोंमें डाँके पड़वाता है तथा और भी लूटना, खसोटना, चोरी are कार्य कराकर अपने जीवनको व्यतीत करता है । एक दिन किसी आदमीने 'प्रभव' से आकर कहा कि 'राजगृह नगर' में 'ऋषभदत्त' श्रेष्ठिके घर 'जंबूकुमार' के विवाह में आया हुआ इतना धन पड़ा है कि यदि तुमारी सात पीढ़ी तक भी बैठी खावे तो भी नहीं खुट सकता । यह सुनकर 'प्रभव' उसी रातको पांचसौ चोरोंको साथ लेकर राजगृह नगरमें जा पहुँचा | रात्रिका समय है चोरोंके लिए तो कहनाही क्या ? घाड़की घाड़को लेकर ' प्रभव' ' ऋषभदत्त' श्रेष्ठिके घर जा पहुँचा जहांपर 'जंबूकुमार ' अपनी नवोढ़ा पत्रियोंके साथ बैठा हुआ संसारकी असारताका विचार कर रहाथा । ' प्रभव' के पास दो विद्यायें बड़ीही प्रबल थीं जिसमें एक ' तालोद्घाटनी और दूसरी ' अवस्खापनी ' थी अत एव ' प्रभव' ने अपनी ' अवस्थापनी ' विद्याके प्रभाव से तस्थ सर्व जनों को निद्रा दे दी और निःशंक होकर 'जंबूकुमार ' के महलमें जाघुसा, परन्तु उस विद्याका बल 'जंबूकुमार ' पर असर न करसका, क्योंकि जिनके पुण्यका सितारा तेज होता है उनका 'इंद्र' भी बाल बाँका नहीं करसकता । ' अवस्थापनी ' विद्यासे निद्रा देकर चोरोंने गहने उतारने शुरु किये | घरके अन्दर चोरोंका हुल्लड़का हुल्लड़ फिरने लगा, इस प्रकारकी कार्रवाई देखकर 'जंबूकुमार' निश्चल मनसे बैठा रहा । दुनियांमें चोर तथा सर्प चाहे कैसे भी दुर्बल हो परन्तु इन दोनोंका रात्रिमें नाम सुनकर मनुष्योंकी छाती धड़क जाती है परन्तु इस प्रकारकी कार्रवाई
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