Book Title: Paia Subhasiya Sangaho Author(s): Bhavyadarshanvijay Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala View full book textPage 9
________________ विहलो जं अवलंबइ, आवइपडियं च जो समुद्धरइ / सरणागयं च रक्खइ, तिसु तेसु अलंकिया पुहवी / / 9 / / अलसायंतेण वि सज्जणेण जे अक्खरा समुल्लविया / . . ते पत्थरेसु टंकुल्लिहियव्व न हु अन्नहा हुँति // 10 // जेष्य परो दुमिज्जइ, पाणिवहो जेण भणिएणं / अप्पा पडइ किलेसे, न हु तं जपन्ति गीयत्था // 11 // जं चिय खमइ समत्थो, धणवंतो जं न गबिओ होइ / जं च सुविज्जो नमिरो, तं तिहि अलंकिया पुहवी // 12 // न हसंति परं न थुण ति अप्पयं पियसयाइ च जपति / एसो सुअणसहावो, नमो नमो ताण पुरिसाण // 13 // मेहाण जलं चंदस्स चंदणं तरुवराण फलनिचयो / सुप्पुरिसाण य रिद्धी, सामन्नं सयललोयस्स // 14 // मम्मं न उ लविज्जइ, कस्सवि आलं 'न दिज्जइ कया वि / को वि न उक्कोसिज्जइ; सज्जणमग्गो इमो दुग्गो // 15 // जलहिविसंघडिएण वि, निवसिज्जइ हरसिमि चंदेणं / जत्थगया तत्थगया, मुणिणो सीसेण कुम्भंति // 16 // नियगरुयपभावपसंसणेण लज्जति जे महासत्ता / इयरा पुण अलियपसंसणेण वि अंगे न मायति // 17 // गरुयावराहिणं पि हु, अणुकंयंतीह जे महासत्ता / जम्हा जे महासत्ता, तेहिं चिय भूसिया धरिणी // 18 // अभिहाणमभणंतो विय होइ पयडो गुणेहिं सप्पुरिसो। छन्नो वि चंदणतरु, किं न कहिज्जइ परिमलेणं / / 19 / /Page Navigation
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