Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ // ॐ ह्रीँ अहं नमः // पाइय सुभासिय संगहो __सज्जणो / THE VIRTUOUS अवयारपरे वि परे, कुणंति उवयारमुत्तमा नूणं / सुरहेइ चंदणदुमो, परसुमुखं छिज्जमाणो वि // 1 // मित्ती परोवयारो, सुसीलया अज्जवं पियालवणं / दक्खिण्ण विणयत्तं सुयणाण, गुणा निसग्गेण // 2 // उदयम्मि वि अत्थमणे, वि धरइ रत्तत्तण दिवसनाहो / रिद्धीसु आवईसु अ, तूल्लच्चिय णूण सप्पुरिसा // 3 // खीर पिव हंसा जे, घुट्टन्ति केवलं समिद्धगुणे / दोसे विवज्जयन्ता, ते जाण सुजाणए पुरिसे // 4 // वाया सहस्समहिअं, सिणेहनिज्झाइअं सयसहस्सं / सम्भावो पुण उज्जुयजणस्स कोडिं विसेसेइ / / 5 / / परगुणगहण छंदाणुवत्तण हिअमककसं वयण। निच्चं सदोसगहणं, अमंतमूलं वसीकरण // 6 // छिज्जउ सीसं अह होउ बन्धण चयउ सव्वहा लच्छी / 'पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ // 7 // अभणंता वि नज्जति सुपुरिसा गुणगणेहिं नियएहि / किं बुल्लति मणीओ, जाओ सहस्सेहिं धिप्पंति // 8 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 124