Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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ज्वलत्किंकुलं दन्दशूकस्य दृष्ट्वा -
ऽवधिज्ञानतो जातशूकः स्वयम्भूः। प्रदाऽशुभोऽयं जनस्येति दुष्टो -
ऽकरोन्नागराज महामन्त्रशक्त्या।।९।। कुमारं पदं भूषयन्नेवमेवं
परस्योपकाराननेकांश्च कुर्वन् । क्षमामण्डले कीर्तिमालां विशाला कुमारो बभाज प्रियां कण्ठपीठे ॥१०॥
- भुजङ्गप्रयातच्छन्दः ।।
इति श्रीसहजकीर्तियतीन्द्रविरचिते
श्रीफलवर्द्धिपार्श्वनाथमाहात्म्ये महाकाव्ये यौवनवर्णन-तत्समयाचारवर्णनात्मकः पञ्चमः सर्गः ।।५।।
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