Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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२. श्रयते शून्यं व्योमतलम्
वृन्तासक्तं भवति फलम् वसुधासक्तं भवति जलम् ।।१।। पुष्करिणीवक्षसि स्तृतम् विकसति रक्तपीतकमलम् ।।२।। आधारेऽधिकरणयुतम् आधेयं तदुपरि शबलम् ।।३।। स्वाधारे स्थितिमन्निखिलम् न निराधारं किमप्यलम् ।।४।। ग्रहा लम्बिता दृश्यन्ते तेषामपि कक्ष्यैव फलम् ।।५।। पिपीलिका वा महीधरः उभयोरेव हि तुल्यबलम् ।।६।। हाला मदयति यथा नरम् तथा हन्ति हालाङ्कहलम् ।।७।। कियद्विचित्रः संसारः समाश्रयति यो भूमितलम् ।।८।। कियद्विचित्रा धराऽप्यहो श्रयते शून्यं व्योमतलम् ।।९।।
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