Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 76
________________ अवयच्छन्तो वि जणो, नोअक्खइ कामिणिं अवखन्तो। न गुरुं चज्जइ नन्नं, पासइ जं तीइ पासत्थो।।२५।। असरीरिणमवअक्खइ, अवआसइ सील-जाइ-रहिअंपि। अवयज्झिऊण तं पि हु, जो इत्थिं छिवइ तस्स नमो॥२६।। फासिज्जइ कविकच्छू, फंसिज्जइ अहव कुविअ-वग्घी वि। फरिसिज्जइ न उणेत्थी, धम्म-सरीरं हणइ छिहिआ॥२७॥ आलिहइ नरमणालुङ्खणिज्जमवि नीअ-रचणी नारी। मूढाण रिअइ सा वि हु, हिअए पविसन्ति-काम्मि ।।२८।। नारीउ हिअय पम्हुस, मा ताओ पम्हुसन्ति पर-लोअं। रोञ्चन्ति धम्म-बीजं, न य रोहइ चड्डिअंतं च ।।२९।। णिरिणासिअ-मेरं णिरिणजिअ-हिरिअंच णिवहिअ-गुणं च। पीसिअ-सीलं नारिं, भुक्किर-सुणइं व को सिहइ ॥३०॥ विलयाहि असाअड्डिअ-हिअओ अणकड्डिओ अ विसएहिं । अञ्चिअ-निव्वाण-सिरी, सो धन्नो थूलभद्द-मुणी ।।३१।। कामेण करिसिअ-सरेणावि अणाइञ्छिओ अणच्छेइ। मह मयणमयञ्छिरेहिं, गुणेहि सिरि-थूलभद्द-मुणी ॥३२॥ अक्खोडिआसि-तिक्खं, धन्नो बम्हं चरिंसु वइर-रिसी। ढुण्ढुल्लण-कुसला जस्स तुल्लमज्ज वि गमेसन्ति ।।३३।। ढण्ढोलिआगमत्थं, घत्तिअ तत्तं गवेसिअप्पाणं। एक्को च्चिअ वइर-रिसी, परिअन्तिअ-परम-बम्ह-सिरी॥३४।। बम्ह-सिरीइ सिलिसिअं, तव-सिरि-सामग्गिअंच आजम्मं । नाण-सिरीए अवयासिअंत वइरं नमसामो॥३५।। मक्खन्तं व सुहाए, चोप्पडमाणं व चन्दण-रसेण। के मुक्खं आहन्ता, गयसुकुमालं न वम्फन्ति ।।३६॥ जो अहिलङ्घइ धम्म, मुक्खं अहिलङ्घइ महइ सुक्खं । सो वच्चउ सिहणिज्जं, सिरि-गोअम-सामिणो मग्गं ॥३७॥ अविलुम्पिअ-भव-सुक्खो, जीव-दयं जम्मओ वि कंखंतो। अज्ज वि सामइअ-जसो, भवाविहीरो जयइ अभओ ॥३८।। 64

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