Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 74
________________ महिलाण पेम्म-संगयमागच्छन्तीण जो न अभिडइ। उम्मत्थइ नाण-सिरी, तस्सब्भागच्छइ विवेओ ॥११॥ न भवे पच्चागच्छइ, अपलोट्टिअ-माणसो जुवइ-सङ्गे। पडिसाय-मणो परिसामिएहिं कहिओवसम-मग्गो।।१२।। संखुड्डण-कुसलाणं, उब्भावन्तीण के वि रमणीण। किलकिंचिअ-मोट्टइअ-कोड्डुमिएहिं न खेड्डुन्ति ।।१३।। रममाणीओ रामा, णीसरणिज्जं अवेल्लणिजं च। अग्घविअ-वम्महाओ, को अग्घाडइ सिणेहेण ॥१४॥ मायाइ उद्घमाया, अहिरेमिअ-तुच्छयाइ अङ्गुमिआ। चवलत्तं-पूरिआओ, को तुवरइ दट्ठमित्थीओ।।१५।। तूरन्ति अतूरन्तं, पि हु जअडावन्ति तुरिअ-मयणाओ। अहह हलिद्दी-राया, खिरन्त-सेएहिं अङ्गेहिं ।।१६।। पच्चडमाण-सरीरा, झरन्त-खाल व्व पज्झरिअ-रमणा। धीरा अणिड्डुअन्ते, वि णिच्चलावेइ ही महिला ।।१७।। उत्थल्लिअ-परिफाडिअ-भेगोवम-रमणि-रमण-रमिराण । सत्ती विअलइ थिप्पइ, कन्ती बुद्धी अणिटुहइ ।।१८।। तस्स विसट्टउ हिअयं, सयहुत्तं दलउ बुद्धि-कोसल्लं । जो लिहइ वलिअ-भत्तं, व वम्फिलालं रमणि-अहरं ।।१९।। अणफुडिअ-इन्दवारण-रम्मा रामा अफिट्ट-कडुअत्ता। रे हिअय फुट्ट चुक्कसि, किं मग्गा ताहि भुल्लविअं॥२०॥ अब्भंसि-दूसिअच्छं, अफिडिअ-कहमाणणं महेलाण । रच्चइ तत्थ वि मूढो, नसिअ-मई णिवहिअ-विवेओ ॥२१॥ सेहइ सीलं पडिसन्ति, धी-गुणा संजमो वि अवहरइ। णिरणासइ सुअमवसेहइ सच्चं जुवइ-सत्ताण ।।२२।। ओवासइ न विवेओ, थी-सङ्गे इअ गुरूहिं संदिसि । अप्पाहामो ता तत्त-पिच्छिरो ताउ को निअइ ॥२३॥ जे भावि-पुलअणा भूअ-देक्खणा वट्टमाण-सच्चवणा। तेहि निअच्छिअ भणिअं, मा इत्थीओ पुलोएह ।।२४।। 62

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