Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 72
________________ प्राकृतविभागः कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितं प्राकृतयाश्रयमहाकाव्यम् सप्तमः सर्गः ओहाविअ-सयल-बलो, उत्थारिअ-अन्तरङ्ग-रिउ-वग्गो। थुन्दिअ-करणो राया, निद्दन्ते चिन्तमिअ काही ॥१॥ अक्कमिआ विसएहिं, टिरिटिल्लन्ता पुरन्धि-सेवाए। ही ढुण्ढुल्लन्ति भवे, चक्कम्मविआ कुकम्मेहिं ।।२।। काम-गह-भमडिएहि, भमाडिओ भम्मडेइ को न भवे । गय-काम-झण्टणो पुण, तलअण्टइ सिद्ध-भूमीसु ।।३।। ढण्ढल्लिअ-भुमयं भुमिअ-धणू जग-झम्पणो गुमिअ-आणो। जं न फुमावइ मयणो, अफुसिअ-बुद्धी खु सो धन्नो ॥४॥ ढुमइ पुरे दुसइ वणे, परइ थलीसुं परीइ जल-मज्झे। अभमिअ-चित्तो इत्थीहिं णीइ धन्नो पसम-रज्जं ।।५।। सो च्चिअ सोक्खमइच्छइ, पसमं उक्कसइ अक्कस्सइ सग्गं । मोक्खं पि हु अणुवज्जइ, अईइ न हु जो जुवइ-सङ्गं ।।६।। तारुण्णे णिम्महिए, अवज्जसन्तेसु हाणिमक्खेसु। हि पच्चड्डइ वुड्डो वि, न पसमं काम-पच्छन्दी ॥७॥ णीणन्ति-मित्त-भज्ज, रम्भन्ति सुअं वहुं पि पदअन्ति। णीलुक्कन्ति च गुरु-गेहिणिं पि काम-वस-परिअलिआ ।।८।। महिलाण वसे परिअल्लिऊण वोलन्त-हरिअमिह पावा। अवसेहन्ति तिरिच्छीउ वि अवहरिउज्जल-विवेआ।९।। जे णिरिणासिअ-मेरा, वम्मह-वस-गा समं न णिवहन्ति । अहिपच्चुइआ नूणं, ते मुहिआ कम्म-भूमिम्मि ।।१०।। 60

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