Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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जेण वहिज्जइ हिअए, सुअ-देवी तेण रुब्भए कम्मं । रुन्धिज्जइ कलि-ललिअं, लिहिज्जए अमयमाकण्ठं ।।८१।। डज्झइ भवो डहिज्जइ, पावं ताणं खु वज्झइ न धम्मो। बन्धिज्जइ जेहि थुई, पवयण-देवीइ भावेणं ।।८२।। भावाउ जाणरुज्झइ, अणुरन्धिज्जइ थवाउं पूआए। उवरुज्झइ उवरुन्धिज्जइ तवओ सा जयउ वाणी ।।८३।। भत्ती-संरुज्झन्ता, संरुन्धिज्जन्तआण मोहेण । न कह वि अवगम्मन्ती, सुअ-देवी देउ मह बोहिं ।।८४।। भण्णन्ती सुअ-देवी, त्ति भणिजन्ती ति-लोअ-माअ त्ति । कम्मेण व भावेणाऽणुगम्ममाणा दिसउ कज्जं ।।८५।। भत्तीए कीरन्तीइ अहीरन्तीइ सइ हरिज्जन्ती। वेडी-करिज्जमाणा, तीरन्ते मोह-जलहिम्मि ।।८६।। अजरिजन्त-मयं पि हु, जीरन्त-मयं जयं पि पकुणन्ती। पतरिज्जन्त-भवोदहि-सेऊवम-चरण-रेणु-कणा ।।८७।। जेहि विढप्पइ कित्ती, विढविज्जइ जेहि उज्जलं नाणं । अज्जिज्जइ जेहि सिरी, सव्वेहि वि तेहि झायव्वा ॥८८।। सव्वं णव्वइ जेहिं, अणज्जमाणा बुहेहिं तेहिं पि। अमुणिज्जन्त-सरूवा, सिद्धेहि वि वाहरिज्जन्ती ।।८९।। वाहिप्पन्ताढप्पन्त-मङ्गले गिण्हणिज्ज-आभिहाणा। आढविअ-थुईहि सया, सिप्पन्ती भत्ति-घिप्पन्ती॥९०।। सुर-वहु-छिप्पन्त-पया, छिविज्जमाणा थुईहि सुअ-देवी। पसमाप्फुण्णस्स निवोक्कुसस्स अह आसि पच्चक्खा ।।९१।। अणथक्कन्त-गिराए, अमयासाराणुहारिणीए तदो। इअ उत्तं देवीए, वच्छल्लेणं महन्देणं ॥९२।। तइ इन्दो निच्चिन्दो, विहरदु अन्देउरम्मि सो दाव। इन्दस्स ताव मित्तं, हवेसि महि-सामिआ तुमयं ।।९३।। हंहो मणस्सि रायं, जं अव भयवं ति विन्नवेदि भवं। रक्खिज्जसु तेण तुमं, जिण-वइणा मेइणी-मघवं ।।९४।।
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