Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 11 SrNo 43
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ उप्पाइअ-सद्दहणो, असद्दहाणे वि देइ जो बोहिं। संसार-नासिरो हं, तं साहुं चिय विहेमि गुरुं ।।६७।। पञ्च वि अरहन्ताइं, परमेट्ठी झाह झाअह किमन्नं । होऊण निव्विकप्पा, पसम-रया होअऊण तहा ।।६८।। जिणउ कलिं अघ चिणिअं, धुणिअ-सिरं सुणिअ-गुण-गणा थुणिआ। इन्देहि वि-जग-पुणणी, सुअ-देवी सयल-अघ-लुणणी॥६९।। सो हुणइ भप्प-मज्झे, ख-पुप्फमुच्चेइ पङ्कयाइँ थले। तह उच्चिणेइ मोत्तुं, सुअ-देविं महइ जो अन्नं ।।७०।। लक्खेहिं पि हुणिज्जइ, हुव्वइ कोडीहिं अहव मन्ताणं। सुअ-देवया थुणिज्जइ, न जा न ता चिव्वए नाणं ।।७१।। तेण चिणिज्जइ नाणं, जिव्वइ मोहो जिणिज्जए कालो। सुअ-देवी अन्नेहि हि, थुव्वन्ता सुव्वए जेण ॥७२।। स-जसं सयं सुणिज्जइ, लुब्वइ कम्मं लुणिज्जए पावं । पुव्वइ अप्पप्प-कुलं, पुणिज्जए महिअ सुअ-देविं ।।७३।। भव-भय-धुव्वन्तेहिं, पवण-धुणिज्जन्त-तूल-तरलस्स। फलमाउअस्स चिम्मइ, सुअ-देवीए पसाएण ।।७४॥ चिव्वइ अह न चिणिज्जइ, जिव्वइ अहवा जिणिज्जए नावि। सुव्वइ अह न सुणिज्जइ, हुव्वइ न हुणिज्जए अहवा ॥७५॥ थुव्वइ अह न थुणिज्जइ, पुव्वइ णाइं पुणिज्जइ अहवा। लुव्वइ अह न लुणिज्जइ, धुव्वइ न धुणिज्जए अहवा॥७६॥ खम्मइ अह न खणिज्जइ, हम्मइ नो वा हणिज्जए जेण। सव्वं पि तस्स सहलं, सुअ-देवि-विइण्ण-पुण्णस्स ।।७७।। खम्मइ कुबोह-सेलो, खणिज्जए मूलओ वि पाव-तरू। हम्मइ कली हणिज्जइ, कम्मं सुअ-देवि-झाणेण ॥७८।। सुअ-देवीं झाअन्तो, अव्वाहय-भत्ति-निच्चल-मणेण हम्मइ संसार-दुहं मोहं हन्तूण हन्तव्वं ।।७९।। दुब्भउ गाई बुब्भउ मारो लिब्भउ खडं च तेणं खु । पवयण-गाई-बोहि-बीरं न दुहिजए जेण १८०)

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100