Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१८
मृतक से बन जाओ। शिकारी तुमको मृतक समझकर नीचे फेंक देगा उस समय तुम लोग एक साथ उड़ जाना। पोपटों ने यही किया और एक साथ उड़कर चले गये। उपाय बताने वाला वृद्ध पोपट वृद्धावस्था के कारण उड़ नहीं सका। शिकारी ने उसे पकड़ लिया और पिंजरे में डाल दिया। वृद्ध पोपट को अपराधी मानकर जब उसे शिकारी मारने लगा तब वह मानव भाषा में बोला--"शिकारी ! तुम मुझे मत मारो। मैं तुम्हारी नुकसानी की भरपाई कर द्ग।। कोई भी दयालु तुम्हें उचित मूल्य देकर मेरी अवश्य रक्षा करेगा।" शिकारी ने पोपट की बात मान ली। उसे पिंजरे में डालकर शहर में ले गया। वहाँ कुबेरदत्त राजकुमार ने दयार्द्र होकर शिकारी को पांच सौ रुपये देकर बचा लिया। पोपट राजकुमार के साथ आनन्द पूर्वक रहने लगा। पोपट काव्य शास्त्र का ज्ञाता था वह विविध प्रकार के काव्य सुनाकर राजकुमार का मनोरंजन करने लगा। यहाँ तक की पोपट ने प्रत्यपकार के रूप में राजकुमार की अनेक ढंग से सहायता की और राज्य प्राप्ति में भी उसने उसे अनेक उपाय बताये । अन्त में कुबेरदत्त के राजा बनने पर उसने पोपट को मुक्त कर दिया। मुक्त होकर पोपट अपने साथियों से मिला। अन्य पोपटों ने भी अपने उपकारी पोपट के उपकारी राजा को चोच में भरभर के अनेक रत्न लाकर दिये और अपने उपकारी के ऋण से मुक्त हुए। इस कथा को आचार्य श्री ने बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत की है।
इसी चरित्र के प. ५७ में अंबूवीचि राजा का दूसरा कथानक है। इस कथानक में यह बताया है कि निर्गुण व्यक्ति भी यदि गुणी और पुण्य शाली के साथ रहता है तो वह भी गुणी की तरह पूजा जाता है और सरलता से अपना निर्वाह कर सकता है। जैसे अंबूविचि । अंबविचि जैसा निर्गुण भी गुणवान प्रधान के पुण्य से विशाल साम्राज्य का अधिकारी बन जाता है। उसका सार यह है-एक समृद्ध राजा था। उसे कोई पुत्र नहीं था। अनेक देव देवी की उपासना के बाद उसे एक पुत्र हआ। किन्तु वह शून्य मनस्क था । जब उसे प्यास लगती थी तो वह अंब बोलता था। जब भूख लगती थी तो वह विचि ऐसा बोलता था। दो शब्द के सिवा अन्य कुछ भी नहीं बोलता था। इससे सब लोग उसे अंबुविचि कहते थे। राजा के मरने के बाद अंबविचि को राज्यगद्दी पर प्रतिष्ठित किया। अंबुविचि राजा बन गया। जैसे मन्दिर में स्थित जड मूर्ति को लोग पूजते हैं और उसकी सारी व्यवस्था पूजारी ही करता है। वैसे ही अंविचि जडवत राज्य गद्दी पर बैठा रहता था। उसके राज्य का संचालन एक बुद्धिमान मंत्री करने लगा। एक दिन मंत्री ने अंबविचि को अपने घर रख लिया और लोगों में यह घोष्णा करवाई की अंबुविचि कुष्ट रोग से ग्रस्त है। उसके स्थान पर मुझे ही राजा ने नियक्त किया है। ऐसी उत्घोषणा करवाकर मंत्री स्वयं राजा बन गया और अंबुविचि के नाम से समस्त सामन्तों को जीतकर अपने अधीन करने लगा । धीरे धीरे उसने अपने छोटे राज्य को विशाल साम्राज्य में बदल दिया । अन्त में प्रजा को खश करने के लिए अंबविचि को पुनः राज्य सिंहासन पर बैठा दिया। लोग अंबुविचि की जय जय कार करने लगे। अंबविचि बिना किसी पुरुषार्थ के केवल प्रबल पुण्यकर्म के उदय से ही विशाल साम्राज्य का अधिकारी बन गया। तीसरी कथा हर्षपाल नप की है। जिसकी कथा का सार यह है।
हर्षपुर नाम के नगर में हर्षपाल नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम हर्षमती और पुत्र का नाम श्री हर्ष था। एक बार कुछ व्यापारी हर्षपुर आये और राजा से मिले । राजा ने पूछा-आप लोग अनेक देश नगरों की यात्रा करते हो। आपने अपनी यात्राकाल में कोई आश्चर्य देखा है ? व्यापारी ने कहा-'हाँ देखा है। धन्यपुर नाम के गाँव में वहाँ के अधिकारी सूरसाल की पुत्री अनपमा को देखा है। ऐसी रूपवती कन्या को
मने आज तक नहीं देखा। उसके अनुपम सौंदर्य के सामने तिलोत्तमा अप्सरा भी हतप्रभ है। यह सुनते ही राजा ने तुरन्त मंत्री को धन्यपुर भेजा और अनुपमा को अपने अन्तपुर में बलवा लिया। उसके अनपम राजा उस पर मुग्ध हो गया। उसने उसके साथ विवाह करने का निश्चय किया। ज्योतिषियों को बुलाया । ज्योतिषियों ने ज्योतिष देखकर कहा-"अनुपमा देवी के उदर से उत्पन्न होने वाला पुत्र यहां के राजा को मारकर उसके राज्य
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