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मेव मंदर पुराण
तत्पश्चात् वह वणिक अपने रत्नों को वापस लेने के लिए सत्यघोप मंत्री के पास गया । वणिक को देखते ही मन्त्री के मन में ऐसी दुर्भावना उत्पन्न हुई कि इसको रत्न वापस नहीं देना चाहिये । व्यापारी ने नमस्कार किया। उसे देखकर मंत्री कहने लगा कि तुम कौन हो, कहां से आए हो, क्यों आये हो ? ऐसा पूछने पर भद्रमित्र ने उत्तर दिया कि मैं वही भद्रमित्र व्यापारी हं जो रत्नों की पेटी आपको देकर गया था। इस प्रकार सुन कर वह मंत्री कहने लगा-क्या तुमने मेरे पास रत्नों की पेटी रखी थी? भद्रमित्र ने कहा-आपका नाम सत्य घोष है, क्या चार दिन में रखी हुई पेटी को भूल गये? तब वह मंत्री कहने लगा कि क्या तू बावला है। मैंने तुमको कभी देखा ही नहीं। पागलपन की बात करते हो। यदि तुमने मुझे रत्नों की पेटी दी थी तो किमके मामने दी थी, उसकी साक्षी कराग्रो। इस प्रकार मंत्री ने कहा।
तब वह भद्रमित्र कहने लगा कि मैंने आपको रत्न देने के बाद आज ही देखा है। और आपने भी प्राज ही देखा है। केवल चार दिन में ही पार भूल गये । अापने यह कहा था कि गुप्तरूप से जब कोई भी न हो उस समय लाकर रत्नों की पेटी देना । क्या आप इस बात को भूल गये ? और यह भी आपने उस समय कहा था कि चोरी करना, दूसरे की सम्पत्ति का अपहरण करना महा पाप है। मेरे रत्नों का आपने ही तो अपहरण किया और मुझे उलटा पाप चोर और पागल बताते हैं, ऐसा भद्रमित्र ने कहा । तब सत्यघोष को क्रोध उत्पन्न हो गया और उसने अपने कर्मचारी को प्राजा दी कि यह पामल है. इसको मार पीट कर बाहर निकाल दो।
तत्पश्चात् वह भद्रमित्र अनेक प्रकार से दुखी होकर गलो २ में पुकारने लगा कि सत्यघोष ने मेरे रत्नों की पेटी ले ली। यह राजा का मंत्री है । ब्राह्मण है. कुलवान है। अब यह मेरे रत्नों की पेटी वापर नहीं देता है और कहता है कि बावला है और मुझे मार कर निकाल दिया। ऐसा पुकारता रहता था।
तब सत्यघोष ने वहां के दुष्ट लोगों से कहा कि इस भद्रमित्र की सारी सम्पत्ति लूट लो और शहर के बाहर इसको निकाल दो। तदनुसार ऐसा हो वहां के दुष्टों ने किया।
__ भद्रमित्र पुकारने लगा कि पहले ही मेरे रत्नों की पेटी ले लो, बाद में गुण्डे लोगों के द्वारा मेरी सम्पत्ति लूटली और मुझे नगर के बाहर निकाल दिया। क्या मेरा न्याय करने वाला इस नगर में कोई नहीं है ? क्या राजा भो न्याय नहीं करेगा? ऐसा कहता हुआ गली २ में घूमता रहता था।
इस प्रकार की बातें राजा के कान में पड़ी तो मंत्री को बुलाकर राजा ने पूछा कि यह वणिक क्या बोल रहा है ? सत्यघोष ने उत्तर दिया कि यह तो पागल है. ऐसे हो पूकारता रहता है। इसकी बात पर कोई ध्यान न देवें। मैं तो खुद लोगों को यह कहता हूं कि चोरी अन्याय पाप वगैरह नहीं करना चाहिये. तो मैं स्वयं ऐसा काम करूंगा? उस भद्रमित्र ने कोई रत्न मुझे नहीं दिया, वह भूठा और पागल आदमी है।
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