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मेरु मंदर पुराण
तदनंतर धरणेंद्र प्रादित्याभ को देखकर कहने लगा कि इस मुनि को विद्य ुद्दष्ट्र ने किस २ भव में क्या २ उपसर्ग व कष्ट दिए हैं-वे मुझे समझा दीजिये । तदनंतर प्रादित्याभ देव धरणेंद्र से कहने लगा कि सुनो ! तुम क्रोध को शांत करो और भगवान को नमस्कार करके मेरे पास श्रावो, तुम्हें सब वृत्तांत कहूंगा ।
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तदनंतर इस बात को सुनकर धरणेंद्र भगवान को नमस्कार करके आदित्याभ देव के पास आकर खड़ा हो गया । तब श्रादित्याभ देव कहने लगा कि मुक्ति को प्राप्त हुए, यह संजयंत मुनि, आप, मैं और विद्यद्दंष्ट्र इन सब की पूर्वभव से आज तक की कथा सुनाता हूं। तुम ध्यान देकर सुनो।
तृतीय प्रध्याय भद्रमित्र का धर्मश्रवरण
इस भरतखंड में सिंहपुर नाम का नगर है । उस नगर के राजा सिंहसेन थे । उनकी पटरानी रामदत्ता देवी थी। उनका सत्यघोष अपर नाम शिवभूति नाम का मंत्री था । वह राजा धर्मनीति द्वारा प्रजावात्सल्य पूर्वक राज्य करता था ।
उसी नगर के अंतर्गत पद्मशंख नाम का नगर था। वहां एक सुदत्त नाम का वैश्य था । उनकी स्त्री का नाम सुमित्रा था। सुमित्रा की कूख से भद्रमित्र नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । भद्रमित्र के यौवनास्था प्राप्त होने पर उसका विवाह कर दिया गया। बड़ा होने पर व्यापार में कुशल व्यापारी होकर वह रत्नद्वीप में गया और वहां पर रत्नों और मोतियों का खूब संग्रह किया और कई दिनों बाद वापस लौटकर बहुत द्रव्य संग्रह करके वापस सिंहपुर नगर में आया । उस भद्रमित्र ने सिंहपुर में आकर देखा कि यहां के सारे व्यापारी लोग सज्जन हैं। यहां कोई अन्यायी नहीं मालूम होते, सभी धार्मिक लोग हैं । शहर भी सुन्दर है। ऐसा विचार करके वहीं व्यापार करने का निश्चय किया और सोचा कि हमारे सारे रत्नों को एक विश्वासी व्यक्ति के पास रख देना चाहिये और अपने नगर में वापस जाकर अपने कुटुम्ब को लाना चाहिये ।
यह विचार करके अपने रत्नों की पेटी वहां के सत्यघोष मंत्री के पास लेकर गया और प्रथम भेंट में एक रत्न उस मन्त्री को दिया । वणिक ने एकांत में बुलाकर उस मन्त्री से कहा कि यह रत्नों की पेटी मैं प्राप के पास रख जाता हूं। मैं अपने कुटुम्ब को पद्मशंख नगर जाकर लेकर आता हूँ। फिर यह मेरे रत्न वापस ले लूगा । तब मन्त्री ने कहा कि तुम इन रत्नों को मुझे एकांत में लाकर जब कोई भी न हो उस समय लाकर देना, इनको सब के सामने रखना कठिन है। तदनुसार भद्रमित्र वरिणक ने स्वीकार कर लिया । तब जैसा मंत्री ने कहा था, एकांत में उन रत्नों की पेटी वरिणक ने मन्त्री को दे दी और अपने नगर पद्मशंख में जाकर अपने कुटुम्ब परिवार को सिंहपुर में ले आया और एक महल में उनको ठहरा दिया।
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