Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

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Page 12
________________ (ग) थी और महकमे में व्यर्थ की सामग्री का ढेर बढ़ रहा था। अहलकार लोग जागीरदारों से लेकर छोटे से छोटे खेत के मालिक तक को अपना इतिहास पेश करने के लिये दबाते थे, और वे लोग वास्तविक इतिहास के अभाव में, उन्हीं अहलकारों से मनमाना इतिहास लिखवाकर महकमे में पेश कर देते थे। यद्यपि स्वर्गवासी प्रख्यात वयोवृद्ध राठोड़-वीर महाराजा सर प्रतापसिंहजी की अपने वीर पूर्वजों के इतिहास को लिखवाकर प्रकाशित करवाने की प्रबल इच्छा थी और इसी से उन्होंने कुछ वर्षों के लिये इस 'इतिहास-कार्यालय' को अपने निज के स्थान पर मी रक्खा था, तथापि उनकी वा इच्छा उनकी जीवितावस्था में पूरी न हो सकी। _ वि० सं० १९७६ (ई० स० १९२२) के करीब स्वयं महागजा प्रतापसिंहजी ने, उस समय के 'इतिहास-कार्यालय' के अध्यक्ष रीयां-ठाकुर रायो बहादुर विजयसिंहजी की उपस्थिति में ही इस इतिहास के लेखक को मारवाड़ का इतिहास तैयार करने में सहायता करने की आज्ञा दी थी। परन्तु इसके बाद शीघ्र ही आपका स्वर्गवास हो जाने से इस विषय में विशेष कार्य न हो सका । इसके बाद जिस समय यह महकमा लेखक को सौंपा गया, उस समय इसकी यही दशा थी, और यद्यपि इस इतिहास के लेखक को इतिहास-कार्यालय के अलावा, 'सरदार म्यूजियम' (अजायबघर ), 'सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी,' 'आर्कियॉलॉजीकल डिपार्टमेंट,' 'पुस्तक प्रकाश' (Manuscript Library) और 'चण्डू-पश्चाङ्ग' के कार्यों का भी निरीक्षण करना पड़ता था, तथापि ईश्वर की कृपा से केवल दो वर्षों में ही इस राजकीय इतिहास की रूप-रेखा तैयार कर ली गई, और वि० सं० १९८६ के ज्येष्ठ ( ई० स० १९२९ के जून ) से इतिहास-कार्यालय के पुराने श्रमले में कमी की जाकर दरबार के खर्च में ५,६०० रुपये सालाना की बचत कर दी गई। वि० सं० १९८५ (ई० स० १९२१) में जब उस समय का आय-सचिव ( Revenue Member ) मिस्टर डी. एल. डेकबोकमैन (I. C. S., C. I. E.), जो आर्कियॉलॉजीकल महकमे का भी कंट्रोलिंग मैंबर' था, अपना यहां का कार्यकाल समाप्त कर 'युनाइटेड प्रौविसेज' में वापस जाने लगा, तब उसकी विदाई के भोज में स्वयं महाराजा साहब ने फरमाया था: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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