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प्राक्-कथन ।
मारवाड़-राज्य राजपूताने के पथिभी भाग में स्थित है और इसका क्षेत्रफल राजपूनाने की रियासतों से ही नहीं, किन्तु हैदराबाद और काश्मीर को छोड़कर भारत की अन्य सब ही रियासतों से बड़ा है । राव सीहाजी के कन्नौज से आने के पूर्व यहां पर अनेक राज-वंशों का अधिकार रह चुका था और विक्रम की नवीं शताब्दी में यहां के प्रतिहार-नरेश नागभट (द्वितीय) ने कन्नौज विजय कर वहां पर अपना राज्य स्थापित किया था । परन्तु विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में चक्र में परिवर्तन हुआ और कन्नौज के राठोड़-नरेश जयच्चन्द्र के पौत्र सीहाजी ने आकर मारवाड़ में अपना राज्य जमाया।
यद्यपि वैसे तो राटोड़-नरेश पहले से ही पराक्रम और दानशीलता में प्रसिद्ध थे, तथापि मारवाड़ के आधिपत्य से इनका प्रताप-सूर्य फिर से पूरी तौर से चमक उठा ।
इसी वंश में राव माल देव-से पराक्रमी, राव चन्द्रसेन-से स्वाधीनताभिमानी और महाराजा जसवन्तसिंह ( प्रथम )-से भारत सम्राट औरंगजेब तक की अवहेलना करनेवाले नरेश हो गए हैं।
इसी से किसी कवि ने कहा है:
वल हट वंका देवड़ा, किरतब बंका गोड़।
हाडा बंका गाढ में, रणवंका राठोड़ ॥ चारणों की कविताओं से प्रकट होता है कि जिस प्रकार इस वंश के नरेश वीरता में अपना जोड़ नहीं रखते थे, उसी प्रकार दानशीतता में भी बहुत आगे बढ़े हुए थे। इनके सम्मान और दान में दिर गांवों के कारण इस समय मारवाइ-राज्य का प्रतिशत ८३ भाग जागीरदारों और शासनदारों के अधिकार में जा चुका है।
इनके अलावा इस इतिहास के पृष्ठ ३६२-३६३ पर दी हुई अपूर्व घटना तो, जिसमें महाराजा रामसिहजी की सेना ने अपने विरोधी जुल्फिकार की भटकती हुई
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