________________
दादावाड़ी-दिग्दर्शन की प्रस्तावना में मुनि जिनविजयजी लिखते हैं :
खरतर गच्छ के मुख्य युगप्रधान आचार्य श्री जिनदत्तसूरि तथा उनके उत्तराधिकारी आचार्यवर्य मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनकुशलसूरि एवं अकबर-प्रतिबोधक श्रीजिनचन्द्रसूरि के स्मारक रूप में दादावाड़ी नाम से जितने गुरुपूजा स्थान बने हैं उतने अन्य किसी गच्छ के पूर्वाचार्यों के स्मारक रूप में ऐसे खास स्मारक स्थान बने ज्ञात नहीं होते।
इन पूर्वाचार्यों में मुख्य स्थान श्रीजिनदत्तसूरि का है । श्रीजिनदत्तसूरि का स्वर्गगमन राजस्थान के प्राचीन एवं प्रधान नगर अजमेर में वि० सं० १२११ में हुआ। जहाँ पर उनके शरीर का अग्निसंस्कार हुआ, वहाँ पर भक्तजनों ने सर्वप्रथम उस स्थान पर स्मारक स्वरूप देबकूल बनाया और उसमें स्वर्गीय आचार्य वर्य के चरणचिन्ह स्थापित किये।
श्रीजिनदत्तसूरि एक महान् प्रभावशाली आचार्य थे। ज्ञान और क्रिया के साथ ही उनमें अद्भुत संगठन शक्ति और निर्माण शक्ति थी। उन्होंने अपने प्रखर पाण्डित्य एवं ओजःपूर्ण संयम के प्रभाव से हजारों की संख्या में नये जैन धर्मानुयायी श्रावक वुलों का विशाल संघ निर्माण विया। राजस्थान में आज जो लाखों ओसवाल जातीय जैन जन हैं उनके पूर्वजों का अधिकांश भाग, इन्ही जिनदत्तसूरिजी द्वारा प्रतिबोधित और सुसंगटित हुआ था। बाद में उत्तरोत्तर इन आचार्य के जो शिष्य-प्रशिष्य होते गए वे भी महान् गुरु का आदर्श सन्मुख रखते हुए इस संघ-निर्माण का कार्य सुन्दर रूप से चलाते
और बढ़ाते रहे । श्री जिनदत्तसूरि के ये सब शिष्य-प्रशिष्य धर्म प्रचार और संघनिर्माण के उद्देश्य से भारतवर्ष के जिन-जिन स्थानों में पहुंचे, वहां पर देवस्थान के साथ-साथ ही वे युगप्रवर्तक प्रवर गुरु के स्मारक रूप में छोटे-मोटे गुरुपूजा स्थान भी बनाते रहे और उनमें सूरिजी के चरणचिन्ह अथवा मूर्ति स्थापित करते रहे। ये स्थान आज सब दादावाड़ी के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे हैं। .. श्रीजिनदत्तसूरि महान् विद्वान और चारित्रशील होने के उपरान्त एक विशिष्ट चमत्कारी महात्मा भी माने जाते हैं अतः उनके नाम-स्मरण तथा चरण पूजन द्वारा भक्तों की मनोकामनाएँ भी सफल होती रही है। ऐसी श्रद्धा पूर्वकाल से इनके अनुयायी भक्तजनों में प्रचलित रही है अतः इस कारण से भी इनकी पूजा निमित्त इन देवकुलों, छत्रियों, स्तूपों आदि का निर्माण होता रहा है। ___ श्रीजिनदत्तसूरि के बाद उनकी पट्ट-परम्परा में होने वाले मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी तथा अकबर-प्रतिबोधक श्रीजिन चन्द्रसरिजी के विषय में भी चमत्कारी होने की बड़ी श्रद्धा भक्तजनों में प्रचलित है। इसलिये प्राय. इन चारों आचार्यों की भी सम्मिलित चरण पादुकाए, मूति आदि प्रतिष्ठित और पूजित होती रही है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org