________________ कीया था, यह मर्यादा पूर्ण होने आई, यात्राके लिये विहार करनेका . विचार मैं कर रहा था। पूज्य मुनिराज श्रीशिवानंदविजयजी महाराजको भी राणकपुरजीकी यात्रार्थ कुछ समयसे अभिग्रह था, उनको मैंने यात्रा निमित्तक विहार करनेकी इच्छा व्यक्त की, उन्होंने भी अपनी इच्छा बतलाई, क्रमशः हम दोनोने पूज्य गुरुदेवके पास यात्रा करने की अभिलाषा दाई, परमोपकारी शासनसम्राट् गुरुदेवश्रीने प्रशांतचित्त होकर शुभ आशीर्वाद पूर्वक विहार करनेकी हम दोनोकों आज्ञा प्रदान की। वि० सं० 2003 के महामासमें जैन सोसायटीसे विहार कर शेरीसा, पानसर, शंखेश्वरजी, कंबोई, चाणस्मा आदि तीर्थोकी यात्रा करते करते तारंगाजी, कुम्भारीयाजी, होते हुए चैत्र सुदि पंचमीको श्रीआबुजी पहोंचे वहाँ श्रीसिद्धचक्रजी आयंबिलकी ओली की। अचलगढकी यात्रा कर आबु-देलवाडासे अनादराके रास्तेसे नीचे उतरकर क्रमशः मीरपुरकी यात्रा करके पाडीव होकर वैशाख सुदि दुजके दिन जावाल आये। जावाल पहोंचे और मंगलाचरण-प्रथम व्याख्यानमें ही श्रीसंघने चातुर्मासके लिये आग्रहपूर्वक विनंति की, परन्तु पूज्य मुनिवर्य श्रीशिवानंदविजयजी महाराज तथा मेरी इच्छा यह थी के 'चातुर्मासके पहीले ही गोडवाड प्रान्तीय बडी पंचतीर्थीकी श्रीवरकाणाजी, श्रीराणकपुरजी आदिकी यात्रा कर लेनी और चातुर्मासके बाद तुरत ही श्रीकेशरीयाजी महातीर्थकी यात्रा कर पूज्यपाद गुरुमहारांजकी निश्रामें पहुंच जाना / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org