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तथा च
प्रथम परिच्छेद
[ ३९
"सुखदुःखजयपराजयजीवितमरणानि ये विजानन्ति । मुह्यन्ति तेऽपि नूनं तत्वविदश्चेष्टिते स्त्रीणाम् ||२८|| जलधेनपात्राणि ग्रहाद्या गगनस्य च ।
यान्ति पारं न तु स्त्रीणां दुश्चरित्रस्य केचन ||२||"
तथा च
"न तत् क्रुद्धा हरिव्याघ्रव्यालानलनरेश्वराः । कुर्वन्ति यत् करोत्येका नरि नारी निरङकुशा ॥ ३०॥”
प्रत्यच्च
" एता हसन्ति च रुदन्ति च वित्तहेतोविश्वासयन्ति च नरं न च विश्वसन्ति ।
तस्मान्नरेण कुलशीलपराक्रमेण
नार्यः श्मशानघटिका इव वज्र्जनीयाः ॥ ३१ ॥ "
* १७ रति मुखसे यह विवरण सुनकर कामको बड़ा क्रोध श्राया और वह कहने लगा-- श्ररी दुश्चरित्रे, अधिक क्यों बक रही है ? जो प्रपंच तूने तैयार किया है उसे मैं खूब समझता हूँ । इस शोक मुझे मारकर तू दूसरा पति करना चाहती है ! स्त्रियाँ भला कब एकसे प्रेम कर सकती है ? कहा भी है :
"स्त्रियाँ एकके साथ बात करती हैं, दूसरेको विलासपूर्वक देखती हैं और मनमें किसी तीसरेका ही ध्यान करती रहती हैं । ये एक व्यक्ति से स्नेह नहीं कर सकतीं ।"
"जिस प्रकार अग्नि काठके ढेरसे तृप्त नहीं होती, समुद्र नदियोंसे तृप्त नहीं होता, काल प्राणियोंसे तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार स्त्रियां भी पुरुषों से तृप्त नहीं हो सकतीं।