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मदनपराजय
* २ इस प्रकार चतुनिकायके देवों-द्वारा वन्दित, सुरागनामोंके पवित्र और श्रुति-मधुर गीतों द्वारा गान किये गये, भामण्डलसे प्रतिभासित, मुनि-मानव और यक्षोंके द्वारा स्तुति किये गये और घामरोंसे विजित तथा तीन छत्रोंसे सुशोभित जिनेन्द्र जैसे ही मोक्षके मार्गसे आने के लिए उस हुए, संगमभी पापी हिमाली तप:श्रीसे इस प्रकार कहने लगो
___ सखी तप:श्री, क्या तुम्हें मालूम नहीं है. भगवान् जिनेन्द्र विविध महोत्सवोंसे भुषित और कृतकृत्य होकर मोक्षमार्गकी और प्रस्थान कर रहे हैं ? यदि भगवान् मोक्ष चले गये तो कामदेव सबल होकर चारित्रपुर पर आक्रमण करके पुनः हमलोगोंको कष्ट पहुंचा सकता है। इसलिए हमें भगवान के पास चलकर उनसे यह निवेदन करना चाहिए कि वे मोक्ष जाने के पहले हमलोगोंको सुरक्षाका कोई स्थिर प्रबन्ध करते जावें।
संयमधीकी बात सुनकर तप:श्री कहने लगी-सखि, तुम्हारा कथन बिलकुल यथार्थ है। चलो, हम लोग भगवान् जिन राजके पास चल कर उन्हें अपनी प्रार्थना सुनावें ।
इस प्रकार निश्चय करके ये दोनों सखियां भगवान् जिनेन्द्रकी सेवामें पहुंची और हाथ जोड़कर इस प्रकार विनय करने लगी
__ हे पुण्यमूति, त्रिभुवनके यशस्वी, सुन्दर सुवर्ण-वर्ण, बीतराग भगवन्, हमें आपकी सेवामें एक बिनय करनी है । वह यह है कि प्राप तो कृतकृत्य होकर मोक्ष जा रहे हैं, और यदि कामने पुनः 'चारित्रपुरपर आक्रमण किया तो यहां भापके प्रभावमें हम लोगोंको सुरक्षा कौन करेगा?
भगवान् जिनेन्द्रने संयमश्री और तप:श्रीको यह बिनय सुनी। उन्होंने भी अनुभव किया कि इनकी विनय वस्तुतः महत्वपूर्ण है ।