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चतुर्थ परिच्छेद
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जब किसी लक्षणशास्त्री ज्योतिषीने मेरे शरीरमें वैधव्य के चिह्न देखकर मेरे पितासे कहा था कि तुम्हारी यह पुत्री जीवनपर्यन्त मक्षय रहेगी में कुछ अशुभ चिह्न
दिखलायी दे रहे हैं।
उस समय मेरे पिताने पूछा था कि वे अशुभ चिह्न कौन-कौन हैं ? तब ज्योतिषीने उन्हें वे सब चिह्न बतलाये थे। में पिता के पास ही बेठी थी और मैंने भी उन्हें सुन लिया था। वे चिह्न आज भी मेरे शरीर में प्रतित हैं। तुम चाहो तो उन्हें सुन सकती हो। मेरा मांस काला है और दांत भयंकर हैं ।
नरकानुपूर्वी कहने लगी- सुन्दरि, व्यर्थ विलाप क्यों करती हो ? मेरी बात सुनो :
पण्डित जन नष्ट हुई, मृत हुई सम्बन्ध में कदापि शोच नहीं करते हैं। विशेषता तो है। सथ:
और बिछुड़ी हुई वस्तुके पण्डित मोर मुखमें यहो
प्राणियों के सम्बन्ध में कदापि शोध नहीं करना चाहिए । जो उनके सम्बन्धमें कुछ भी शोच करता है वह मूर्ख कहलाता है और वह दुख हो दुख भोगता रहता है। इस प्रकार उसे मूर्खता और दुख - ये दो अनर्थ कदापि नहीं छोड़ते 1
नरकापूर्वी कहती है-- इसलिए हे सखि, तुम्हारा पति सम्यक्त्व वोरकी तलवार के भाषातसे ग्राहृत होकर कुमार्ग ही में प्रविष्ट हुआ है । अत: तुम व्यर्थ शोक मत करो । कहा भी है: ---
"रे हृदय इस आघातको सम्हाल | मरकर फिर कोई नहीं आता । अपनेको अजर-अमर मान कर पीछे अपूर्व रुदन करना पड़ता है ।"
इस प्रकार नरकानुपूर्वी उसे धीरज बँधाकर वहाँसे चल दी ।