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चतुर्थ परिच्छेद
[ १५३ जब रतिने अपने हाथीको जिनके प्राघातसे पाहत होकर पृथ्वीपर गिरते देखा तो उसका हृदय अत्यन्त व्याकुल हो गया । उसका मुख दीन पड़ गया और वह अश्रु गद्गद वाणोमे कामसे कहने लगी-स्वामिन्, पाप अब भी क्या देख रहे हैं ? सेनाका सर्वनाश हो चुका है। अकेले तुम ही बच रहे हो। इसलिए मेरी तो यही राय है कि अब हमें यहासे तुरन्त चल देना चाहिए । कामको सेनाका जिस प्रकारसे दिनाश हुमा उसे भो देख लीजिए :
ज्योंही स्याद्वाद भेरोकी पावाज होनी शुरू हुई और जिनराजकी सेना का गर्जन प्रारम्भ हुमा, कामकी सेनामें भगदड़ मच गई।
उस समय जिस प्रकार भास्करसे डरकर अन्धकार भाग जाता है, उसी प्रकार पाँच इन्द्रियां भी पाच महावतोंसे डरकर भयभीत हो गयौं। और जिस प्रकार सिंहसे हाथी भयभीत हो जाता है उसी प्रकार दश धर्मराजामोंके सामने कर्मवीर भी डर गये।
और जैसे हो तत्त्ववीर सामने आये, सात भय बीर मनमें चकित हो गये। तथा जैसे ही प्रायश्चित्त सुभटोंने प्रयाण किया, शल्य वीर भी सभयमन होकर रणसे भागने लगे।
और जिनराजको सेनामें जैसे ही आचार वीरने प्रवेश किया, आश्रयकोर कैंप गया। तथा धर्म और शुल्क वोरके सामने आते ही आर्त और रौद्रवीर द्रवित हो उठे।
१५ एवंविधो मदनसन्यस्य भङ्गो यावत प्रवर्तते तावत्तस्मिन्नवसरेऽवधिज्ञाननामा बोरो जिनसकाशमागत्य प्रणम्योवाच-भो भो देव, लग्नमासन्न सम्प्राप्तम् । किमनेन युविस्त (स्ता) रेण ? यतोऽयमेको मदन इहाधृतोऽस्ति । अन्यच्च, मोहोऽयं तावत् केवलज्ञानवीरघातः क्षीणत्वं मतो