Book Title: Madan Parajay
Author(s): Nagdev, Lalbahaddur Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 188
________________ पंचम परिच्छेद [ १८७ और स्वेद प्रादिसे रहित तपोनिधि, क्षमाशील, संयमी, दयालु, समाविनिष्ठ तीन छत्र और भामण्डलसे सुशोभित, देव-देव, मुनिवृन्दके द्वारा वन्दनीय, वेद-शास्त्रीद्वारा उपगीत और निरजन जिनराज सिंहासनसे उठकर खड़े हो गये । वह धनुषके सामने प्राये और उसे हाथमें ले लिया। उन्होंने जैसे ही उसे कान तक खींचा. वह टूट गया और उसके टूटनेसे एक महान भयङ्कर शब्द हुआ । कर्म-धनुषके भङ्ग होनेपर जो नाद हुआ, उससे पृथ्वी चलित हो गयो। सागर और गिरि कैप गये तथा ब्रह्मा प्रादि समस्त देव मूच्छित होकर गिर गये। ज्यों हो मुक्ति-श्रीने यह दृश्य देखा, उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने तत्काल नाभिनरेशके सुपुत्र श्री वृषभनाथके कपट में तत्त्वमय वर-माला डाल दी। वरमालाके डालते ही देवाङ्गनाएँ मङ्गल-गान गाने लगी और इस महोत्सवको देखने के लिए समस्त चतुनिकायके देव आकर उपस्थित हो गये। इन देवोंमें कोई सिंहके वाहनपर सवार थे तो कोई महिषके। कोई ऊँटके वाहनपर अधिरूढ़ थे, तो कोई चीतेके । कोई बैल के वाहनपर बैठे हुए थे, तो कोई मकरके। किन्हींका वाहन वराह था तो किन्हींका व्याघ्र । किन्हींका गरुड़ था तो किन्हींका हाथी। किन्हींका बगुला था तो किन्हींका हंस । किन्हींका चक्रवाक या तो किन्हींका गैडा। किन्हींका गरुड़ था तो किन्हीं का गवय । किन्हींका अश्व था तो किन्हींका सारस । इस प्रकार समस्त देव अपने-अपने वाहनोंपर बैठे हुए थे। इसके अतिरिक्त उनके शरीर सोलह प्रकारके प्राभूषणों से प्राभूषित थे, उनके विमानोंकी ध्वजाए और वस्त्र वायु-विकम्पित हो रहे थे और उनके किरीटोंकी कान्ति अनेक प्रकारके देदीप्यमान मणि और सूर्यके प्रकाशको भो अभिभूत कर रही थी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195