Book Title: Madan Parajay
Author(s): Nagdev, Lalbahaddur Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 170
________________ चतुर्थं परिच्छेद [ १६९ देशकी सीमा बतलाते हुए उसे एक सीमा-पत्र दे दो, जिससे वह इस निर्धारित सीमाके भीतर कदापि प्रवेश न करे । जिनराजकी आज्ञानुसार दर्शनवीर ने इस प्रकारसे सीमान्पत्र लिखना प्रारम्भ कर दिया : - शुक्र - महाशुक्र, शतार-सार, श्रानत-प्राणत, धारण-अच्युत, नव ग्रेवेयक, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि तथा सिद्धशिला पर्यन्त के प्रदेशों में यदि मदनने प्रवेश किया तो इसे अवश्य ही मृत्यु दण्ड दिया जायगा।' इस प्रकार श्रीकार - चतुष्टय के साथ सीमा पत्र लिखकर रतिके हाथ में दे दिया । * १६ ततोऽनन्तरं भूयोऽपि रतिप्रीस्पो ( तो ) जिनेन्द्र प्रति विज्ञापयांचऋतु:-देव, तदना कतिपय भूमि यथाऽस्मानयति तथाविषसहचरो दातव्यो भवद्भिः । तच्छ्रुत्वा जिनेन्द्रः सकलात्म सुभटानामाह्वाननं (ह्नामं) चकार । तद्यथाधर्माचारमाः क्षमानयतपोमुण्डाङ्गतत्त्वक्रियाः प्रायश्चितमतिश्रुतावधिमनः पर्यायशीलाक्षकाः । निर्देगोपशम सुलक्षणभटाः दृष्टाभिधा ( ? ) संयमाः स्वाध्यायाभिधब्रह्मचर्य सुभटा द्वौ धर्मशुक्लाभियो । ६१ । गुप्ति गुणा महागुणभटाः सम्यक्त्व निर्धन्यकाः पूर्वाङ्गाभिकेवलप्रभृतयो येभ्येऽपि सर्वे भटाः । तानाहूय जिनो बभारण भवतां मध्ये हि को यास्यति प्रद्युम्नं कियदन्तरं कथयत प्रस्थापनार्थं पुमान् ? |२| तदाकर्ण्य से सर्वे न किचिद् वन्तः स्थिताः, तदा जिनेन्द्रः पुनरभाषत - अहो, कस्माध्यं मोनेन स्थिताः ? किमर्थ मेतस्य (स्मात् ) युष्माकं मनसि भीतिर्वर्तते ? अयं तावन्म

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