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चतुर्थ परिच्छेद
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शीघ्र स्वदेश सोमा कथ्यते (ताम्) । सतो जिम वर्शनबीरगणक मुख्यमाहूयाभिहितम् - अरे दर्शनवीर, मनस्य देशपट्टबानार्थ स्मदेशसीमापनं विलिख्य समर्पय ।
सणवीरः स्वचेतसीमापत्रं लिलेख ।
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तद्यथा
"शुक्रमहा शुक्रशतार सहस्राराऽऽमतप्रानताऽऽरणाच्युतन - अत्रैवेयक विजयवैजयन्त जयंता पराजित सर्वाभंसिद्धि शिलापर्यन्तेषु देशेषु मदनश्चेत्प्रविशति तदवश्यं मन्धनीयः" इति विलिख्य श्रीकारचतुष्टयसहितं सीमापत्रं रतिहस्ते यत्तम् ।
* १८ जब काम जिमराज से पराजित हो गया तो सेना के कतिपय सुभट कामके सम्बन्ध में इस प्रकार मन्त्ररणा करने लगे- यह अधम है, इसे मार डालना चाहिए । कुछ कहने लगे- इसका शिर मूंडकर और गधे पर बिठाकर इसे निकाल देना चाहिए। और कुछ सुभट कहने लगे – इसे चारित्रपुरसे बाहर ले जाकर शूलीपर चढ़ा देना चाहिए । इस प्रकार जब समस्त सामन्त परस्पर में इस प्रकारसे वार्ता - लाप कर रहे थे उस समय रति और प्रीति कामके दुखद समाचारसे दुखित होकर जिनराजके पास आयीं और इस प्रकार प्रार्थना करने लगीं :--
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हे धर्माम्बुद, हे करुणासागर, हे मुक्तिलक्ष्मीपति, हे भव्यरूपी कमलोंके लिए सूर्य, हे सर्वार्थचिन्तामणि, हे चारित्रपुरके अधिपति - भगवन् जिनराज, आप हमपर करुणा कीजिए और कामदेवको जीवित छोड़कर हमारा सौभाग्य श्रचल कीजिए । हे प्रभो आप दीनानाथ हैं, इसलिए हम लोगोंकी प्रार्थना पर श्रवश्यमेव ध्यान दीजिए । यद्यपि संसार में यह दण्ड विधान सुप्रसिद्ध है कि सत्पुरुषकी सब तरह से रक्षा होनी चाहिए और दुर्जनको दण्ड दिया जाना
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