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मदनपराजय
तथा च
पवनगतिसमानरश्वयूषैरनन्तमंदधरमजयूथै राजले सैन्यलक्ष्मीः । ध्वजचमरवरात्रावृतं एवं समस्तं पपटहमृबङ्ग रिनास्त्रिलोकी ॥३॥ अश्वाङ प्रचाहतरेभिर्बहुतराप्तं स्वशेष नभः छत्ररावृतमन्तरालमखिलं ज्याप्ता च वीरैरा । निर्घोष रथः स्व नः प्रपतितं (तः) कर्णेऽपि न भूयते धीराणां निनदः प्रभूतभयदेय क्ता प्रपना चमूः ॥३६।।
*.६ जब कामदेवके कतिपय सुभटोंने बन्दीको इस प्रकार विकलाङ्ग रूपमें प्राते हुए देखा तो उन्हें बड़ी हँसी आयी। वे कहने लगे-अरे, देखो-देखो, बन्दी कैसी दुखद अवस्थामें पा रहा है !
बन्दी इन लोगोंको इस प्रकार उपहास करता हुआ देखकर कहने लगा-अरै मूखों, मुझे देखकर क्यों हँस रहे हो । अभी मेरो यह दुर्गति हुई है और आगे तुम्हारी भी यही दशा होनेवाली है। कारण जिस कार्य में पहले जैसे शकुन दिखते हैं उस कार्यका अन्त भी लगभग उसो प्रकारका होता है। जब मेरी इस प्रकार की दुर्गति हुई है तो कह नहीं सकता कि इस युद्ध का परिणाम स्वामी के हित में किस प्रकार का रहेगा। इसलिए आप लोग अच्छी तरहसे सोन लीजिए । यदि हम लोगों में जिनराजको सेनाके सामना करनेकी शक्ति हो तो ही हम लोगोंको लड़ना चाहिए। अन्यथा इस देशको छोड़कर यहांसे चल देना चाहिए। जिससे जीवन-रक्षा हो सके ।
कामदेव बन्दीकी यह बातें सुन रहा था। उसने बन्दीको बुलाया और उससे कहने लगा---अरे बहिरारमन्, बतलाओ तो वह जिनराज क्या कह रहा है ? कामदेवकी बात सुनकर बन्दी उसके